गेटवे बोट हादसा (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से करीब 10 किलोमीटर दूर समुद्र के भीतर स्थित बुचर द्वीप के निकट नीलकमल नामक एक यात्री बोट से, बेहद तीव्र गति से समुद्र में मंडरा रही नौसेना की स्पीड बोट टकरा गई। इस टकराव से भयानक हादसा हो गया। गेटवे ऑफ इंडिया से हर दिन करीब 12 से 14 किलोमीटर दूर स्थित एलिफेंटा केव के लिए पर्यटकों की संख्या के अनुसार नावें या फेरीज जाती हैं।
करीब एक घंटे में ये नावें गेटवे ऑफ इंडिया से एलिफेंटा केव की दूरी तय करती हैं। यहां भी तमाम नियमों, कानूनों की धज्जियां उड़ायी गई। जिस बोट में 110 यात्री सवार थे, उसकी क्षमता सिर्फ 80 लोगों की थी। साथ ही समुद्र के अंदर चलने वाली समुद्री नावों के लिए अनिवार्य नियम है कि हर यात्री बोट में सवार होते ही लाइफ जैकेट पहनेगा, लेकिन पता चला है कि नाव में पर्याप्त लाइफ जैकेट थी ही नहीं और जितनी थी, उन्हें किसी भी यात्री ने नहीं पहन रखा था।
इस दुर्घटना में नौसेना के 3 जवानों सहित 13 लोगों की मौत हो चुकी थी। 101 लोगों को हादसे के बाद बचा लिया गया है, लेकिन उनमें से कई की हालत अब भी गंभीर है। इस घटना का निश्चित कारण तो व्यापक जांच के बाद ही सामने आयेगा, लेकिन दुर्घटना से जीवित बचे यात्रियों और उनके द्वारा बनाये गए कुछ मोबाइल वीडियो से इस दुर्घटना से जिन प्रारंभिक कारणों का पता चलता है, वह यही है कि यह दुर्घटना जिस नौसेना की स्पीड बोट से टकराकर हुई, वह यात्रियों से भरी नौका के इर्दगिर्द बहुत ही तेज रफ्तार से चक्कर लगा रही थी, लगभग स्टंट सा करती हुई। कुछ यात्रियों ने तो इस स्टंट को कैमरे में कैद करने के लिए नौका की छत पर खड़े होकर इसका वीडियो बनाया।
हालांकि घटना के बाद मुंबई पुलिस ने नीलकमल नाव पलटने के संबंध में नौसेना के स्पीड बोट चालक और अन्य जिम्मेदार लोगों के खिलाफ गेटवे ऑफ इंडिया के निकट कोलाबा पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कर ली है। यह एफआईआर जीवित बचे नीलकमल नौका में सवार यात्री 22 वर्षीय नाथाराम चौधरी की शिकायत पर दर्ज की गई है।
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शिकायत के मुताबिक नौसेना की स्पीड बोट यात्री बोट के इर्दगिर्द बहुत तेज चक्कर लगा रही थी, जब इस बात पर कुछ पत्रकारों ने नौसेना के अधिकारियों से स्पष्टीकरण चाहा तो नौसेना के अधिकारियों ने कहा कि यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि नौसेना की स्पीड बोट की उस समय रफ्तार क्या थी, जब यह यात्री नौका से टकरायी। लेकिन उनके मुताबिक नौसेना की स्पीड बोट की रफ्तार 140 किलोमीटर प्रतिघंटे तक जा सकती है।
नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक जब भी किसी क्राफ्ट पर कोई बड़ा कंपोनेट जैसे कि इंजन आदि को लगाया जाता है तो नौसेना ओईएम के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर इसका टेस्ट करती है ताकि ऐन मौके पर कोई समस्या उभरकर सामने न आए। नौसेना के मुताबिक अगर किसी कंपोनेट के निर्माता दावा करते हैं कि इंजन 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार तक पहुंच सकता है, तो हम इस दावे की पुष्टि के लिए उनके साथ मिलकर इसका परीक्षण करते हैं। वास्तव में यह वैसा ही परीक्षण हो रहा था।
यहीं पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि क्या इतनी संवेदनशील सैन्य गतिविधियां चाहे वह किसी मशीन की परीक्षण के ही क्यों न हों, क्या उन्हें आम सिविलियंस से भरे क्षेत्र में किया जाना चाहिए? किसी हार्बर या बंदरगाह में भारतीय नौसेना, तटीय सुरक्षाबल आदि की मौजूदगी जरूरी होती है।
इस दौरान यहां हजारों की संख्या में लोग मौजूद होते हैं। क्योंकि इस दौरान गेटवे ऑफ इंडिया से दर्जनों फेरीज यात्रियों को लेकर थोड़ी थोड़ी देर बाद एलिफेंटा केव की दहलीज तक जाती हैं और फिर वहीं से दर्शन करके लौटने वाले लोगों को वापस गेटवे ऑफ इंडिया छोड़ती हैं।
इस पूरे समय यहां लॉजिस्टिक सपोर्ट और आपातकालीन संकट से निपटने के लिए नौसेना और तटीय सुरक्षा बल की मौजूदगी जरूरी है। लेकिन क्या इस व्यस्त समय में कोई खतरनाक परीक्षण भी नौसेना द्वारा इस इलाके में किया जा सकता है? बात सिर्फ कानून की नहीं है, इसे एक सामान्य सुरक्षा पहलू के नजर भी देखना चाहिए। अभी तक जो बात निकलकर सामने आयी है, उससे यही पता चलता है कि जिस स्पीड बोट के इंजन का नौसेना चालक दल उसके 140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार का परीक्षण कर रहा था, वास्तव में वही हादसे का कारण बनी।
माना जा रहा है कि इंजन फेल हो गया और चालक का स्पीड बोट पर नियंत्रण नहीं रहा, जिस कारण नौसेना की स्पीड बोट पर्यटकों से भरी बोट से टकरा गई। एक साल पहले भी एक हादसा हुआ था, जिसमें तीन पर्यटकों की मौत हो गई थी। इसे सबक के तौरपर लिया जाए और नौसेना की प्रशिक्षण व परीक्षण संबंधी गतिविधियां या तो अलग सम्पन्न की जाएं या फिर इनके लिए हर दिन या सप्ताह के कुछ दिन का विशेष समय निर्धारित हो।
मुंबई जैसे भारी आबादी वाले शहर की पर्यटन गतिविधियों में सुरक्षा संबंधी निर्देशों का सख्ती से पालन हो। जो दुर्घटना गेटवे ऑफ इंडिया से चलने वाली पर्यटन बोट को लेकर हुई, उस पर एक नहीं बल्कि कई निगरानी के चक्र हैं। मसलन स्थानीय सरकार,नगर निगम, पर्यटन विभाग, कोस्ट गार्ड और समुद्री पुलिस, बंदरगाह प्राधिकरण और पर्यावरण संरक्षण एजेंसियां। आखिर पांच पांच चेक प्वाइंट के बावजूद यह लापरवाही क्यों हुई? इसकी भी जांच होनी चाहिए।
लेख- डॉ. अनिता राठौर द्वारा