(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जब अंतर्मन में कुछ जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है तो व्यक्ति सवाल पूछने लगता है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को लेकर सवाल उठाए और टिप्पणी की तो बुरी तरह फंसे। इस मामले में उन पर समन जारी किया गया।”
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘इस समन को रद्द करने से गुजरात हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया। इसके बाद केजरीवाल ने इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इससे सीख मिलती है कि बड़े लोगों की पढ़ाई-लिखाई और डिग्री के बारे में व्यर्थ की पूछताछ नहीं करनी चाहिए वरना सवाल उठानेवाला मुसीबत में फंस जाता है।’’
हमने कहा, ‘‘क्या एवरेस्ट के शिखर पर चढ़नेवाले या ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतनेवाले से कोई उसकी डिग्री पूछता है। नेता का नेता होना ही सबसे बड़ी डिग्री है। उसका प्रैक्टिकल नॉलेज ही उसका सबसे बड़ा कॉलेज है। उसकी शब्दों और जुमलों की जगलरी उसकी मेरिट को दर्शाती है। इसलिए कभी किसी नेता की डिग्री के बारे में पूछना अपमानजनक है। लोग संत तुलसीदास, सूरदास के बारे में पीएचडी और डीलिट करते हैं। ये महान संत किसी भी स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में नहीं गए थे।’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपने हमें अच्छे से समझा दिया। देश में सफेदपोश लोगों की बेरोजगारी इतनी है कि चपरासी की नौकरी के लिए भी एमए पीएचडी डिग्रीवाले एप्लाई करने लगे हैं। दुनियादारी को जानना या व्यावहारिक ज्ञान रखना ही असली उपलब्धि है। किसी पोलिटिकल साइंस के प्रोफेसर के किताबी ज्ञान से किसी पोलिटिकल लीडर का प्रैक्टिकल नॉलेज बेहतर रहता है।”
पड़ोसी ने कहा, ‘‘प्रोफेसर को 5 वोट नहीं मिलेंगे लेकिन नेता रिकार्ड वोटों से चुनाव जीत जाता है क्योंकि वह जनमानस को अच्छी तरह जानता है। कोई कितना पढ़ा है, उससे ज्यादा महत्व इस बात का है कि वह किन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच कैसे गढ़ा गया है। संत कबीरदास ने सही कहा था- पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, भया ना पंडित कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय!’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा