मोहन भागवत (डिजाइन फोटो)
नवभारत देश: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ दिन पहले हिदायत दी थी कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजना बंद करें। उनका आशय यही था कि संयमित रहते हुए सामाजिक सौहार्द्र कायम रखा जाए और स्थिति न बिगड़ने दी जाए लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कार्यकर्ता उनकी सुन रहे हैं। पहले उत्तरप्रदेश के संभल की जामा मस्जिद का सर्वे करने का आदेश जिला अदालत ने दिया जिससे हिंसा भड़क उठी और 4 लोगों की मौत हो गई।
इसके बाद राजस्थान के अजमेर में एक कनिष्ठ जिला अदालत ने अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के संबंध में ऐसी ही याचिका की सुनवाई करने के लिए नोटिस जारी किए। यह एक खतरनाक सिलसिला है। बाबरी ढांचा ढहाने की 32वीं बरसी निकट आ रही है। ऐसे में मंदिर-मस्जिद विवाद भड़कना, भारत के धर्म निरपेक्ष चरित्र को फिर क्षति पहुंचा सकता है।
अति उत्साही याचिकाकर्ता वाराणसी, मथुरा और संभल से लेकर अजमेर शरीफ दरगाह तक पर दावा कर रहे हैं। तर्क यह है कि विदेशी आक्रमणकारियों व मुगलों ने मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद या दरगाह बनाई। इस तरह की गतिविधियों से उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 का उल्लंघन होता है जिसमें धार्मिक स्थलों की वही स्थिति कायम रखने को कहा गया था जैसी आजादी के समय 15 अगस्त 1947 को थी।
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इस कानून ने सिर्फ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को अपने दायरे से बाहर रखा था। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के लंबे चलनेवाले विवादों को समाप्त कर दिया था लेकिन फिर भी याचिकाएं दायर की जा रही हैं। 1991 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने 20 मई 2022 में टिप्पणी की थी कि यह कानून सर्वे करने पर कोई रोक नहीं लगाता।
कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने कहा कि देश में आग लगाकर सीजेआई रिटायर हो गए। वह संभल-अजमेर में हुए विवादों के लिए जिम्मेदार हैं। कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि पूर्व सीजेआई की टिप्पणी ने इस तरह की याचिकाओं के लिए रास्ता साफ कर दिया।
उन्होंने कहा था कि प्लेसेस ऑफ वर्शिस एक्ट किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर प्रतिबंध नहीं लगाता। सर्वे किए जाने से विवाद बढ़ गया। इस परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने संभल में सर्वे कराने के स्थानीय कोर्ट के आदेश पर अगली कार्रवाई तक रोक लगा दी और मस्जिद प्रबंधन से इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत मांगने को कहा।
हाईकोर्ट 3 दिनों में इस मुद्दे पर निर्णय ले सकता है और बाद में सुनवाई कर सकता है। इसी तरह मथुरा ईदगाह समिति की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट 9 दिसंबर को सुनवाई करेगा। मस्जिद के नीचे कृष्ण जन्मभूमि मंदिर होने संबंधी 18 मामलों को रद्द करने की मांग ईदगाह कमेटी ने की थी जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा