8वें वेतन आयोग (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बिहार विधानसभा चुनाव का मौका साधकर केंद्र सरकार ने10 माह विलंब के बाद अपने 50,00,000 कर्मचारियों और 69,00,000 पेंशनरों को खुश करने के लिए 8वें वेतन आयोग की खुशखबर दी है।सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई पे कमीशन की चेअरपर्सन होंगी सरकार ने आयोग के नियम व शर्तों को मंजूरी देते हुए स्पष्ट कर दिया कि 18 माह में वेतन आयोग की सिफारिशें आ जाएंगी।अप्रैल-मई 2027 तक आयोग रिपोर्ट सौंप सकता है तथा सरकार इस पर विचार करने के लिए 3 से 6 माह ले सकती है।आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से प्रभावी मानी जाएंगी अर्थात जब भी यह अमल में आए।
केंद्रीय कर्मियों को एरियर्स या बकाया राशि समेत भुगतान होगा।यह भी हो सकता है कि केंद्र के बाद राज्य सरकारें भी इसे लागू करें।पहले ही कर्ज में दबे राज्यों की आर्थिक स्थिति पर इसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।नियमानुसार हर 10 वर्ष में नए वेतन आयोग का गठन किया जाता है जिसमें केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन-भत्ते व अन्य सुविधाओं को संशोधित किया जाता है।इतना निश्चित है कि जब भी वेतन आयोग लागू होता है, देश में महंगाई तेजी से बढ़ जाती है।इसका विपरीत असर ऐसे करोड़ों लोगों पर होता है जो निजी क्षेत्र में नौकरियां कर रहे हैं अथवा छोटा-मोटा स्वयंरोजगार करने में लगे हैं।भारत की 145 करोड़ की आबादी में युवा बेरोजगारी की गंभीर समस्या है।सरकारी नौकरियां गिनी-चुनी हैं।जिसे मिल गई उसे महसूस होता है मानो उसकी लॉटरी खुल गई।
सरकार अपने कर्मचारियों को खुश कर देगी लेकिन करोड़ों किसानों-मजदूरों का क्या होगा ? क्या कुछ लाख के कर्ज के बोझ और मौसम की मार से पीड़ति किसान इसी तरह आत्महत्या करते रहेंगे? उनके लिए क्यों नहीं कुछ सोचा जाता ? क्या वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से सरकारी कर्मचारियों के कामकाज की दक्षता बढ़ जाती है? क्या वह अधिक उत्पादकता या आउटपुट पेश करते हैं? सरकारी दफ्तरों के कामकाज में आम तौर पर शिथिलता देखी जाती है।क्या सरकार अपने कर्मचारियों के परफार्मेंस या कामकाज का वर्क ऑडिट करती है? ऊंची-ऊंची डिग्रियां लेने के बाद भी लोगों को बेरोजगारी से जूझना पड़ता है या मामूली सी कम वेतन वाली नौकरी करनी पड़ती है जो अस्थायी किस्म की होती है।कितने ही उद्योगों के घाटे में चलने से बंद होने की नौबत आती है जहां हजारों कर्मचारी सड़कों पर आ जाते हैं।
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सरकारी कर्मचारियों या पब्लिक सेक्टर के कर्मियों के लिए ऐसा कोई खतरा नहीं होता।उनकी नौकरी सलामत रहती है और समय-समय पर वेतन-भत्ते में बढ़ोतरी होती रहती है।स्थायी सरकारी कर्मचारी को छटनी का भय भी नहीं रहता।उसकी कुशलता के मानदंड तय होने चाहिए तभी वेतन आयोग की सार्थकता है।सरकारी कर्मचारी उम्मीद करेंगे कि उन्हें बकाया (एरियर्स) की रकम भी एक साथ नकद रूप में दी जाए।यदि ऐसा हुआ तो बाजार में पैसा पहुंचने से महंगाई को पंख लग जाएंगे।इसे देखते हुए सरकार बकाया रकम को भविष्य निधि या पेंशन कोष में जमा कर सकती है जो निवृत्ति के समय ब्याज समेत कर्मचारी को उपलब्ध कराई जाए।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा