हमारे देश में भाषायी विविधता के अलावा प्राचीन व शहरी सांस्कृतिक परिवेश में बड़ा अंतर है. मिसाल के तौर पर विदर्भ या मराठवाडा के किसी देहात में रहनेवाला छात्र उसी उम्र व कक्षा के पुणे या मुंबई के छात्र से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता. इसकी वजह प्रतिभा या लगन की कमी नहीं है बल्कि भाषा संबंधी दिक्कत है. अंग्रेजी माध्यम कितने ही विद्यार्थियों के लिए हौआ बना हुआ है. इसलिए होशियार छात्र भी विविध विषयों में कुशलता के बाद भी अंग्रेजी माध्यम की वजह से पिछड़ जाता है. वह मातृभाषा में अच्छी तरह प्रश्नों का उत्तर लिख सकता है लेकिन अंग्रेजी में उसे दिक्कत महसूस होती है. मातृभाषा में सोचकर उसका जैसे-तैसे अंग्रेजी अनुवाद करना उसकी मजबूरी हो जाती है. इन सारी दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई ने अब एक अत्यंत उपयुक्त निर्णय लेते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में भी शिक्षा प्रदान करने की घोषणा की है.
बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सीबीएसई ने अपने स्कूलों में वैकल्पिक माध्यम के तौर पर भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल करने पर विचार करने को कहा है. इसके पीछे मूल लक्ष्य यही है कि शिक्षा को सुलभ व बोधप्रद बनाया जाए और छात्रों के मन से अंग्रेजी का डर हटाया जाए. सीबीएसई की पढ़ाई उच्चस्तरीय तथा स्टेट बोर्ड से बेहतर और व्यापक मानी जाती है. जो विद्यार्थी बचपन से अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे हैं, उनके लिए कोई कठिनाई नहीं है लेकिन ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्र के ऐसे छात्र जिनकी पढ़ाई की शुरुआत मातृभाषा में हुई है अथवा जिनके माता-पिता अंग्रेजी नहीं जानते, उनके लिए अंग्रेजी माध्यम अत्यंत दुरूह हो जाता है. सीबीएसई के निदेशक (एकेडमिक) जोसेफ इमैनुएल ने कहा कि भारतीय भाषाओं के जरिए शिक्षा उपलब्ध कराने की सुविधा के लिए की गई पहल के मद्देनजर सीबीएसई से संबद्ध स्कूल अन्य मौजूदा विकल्पों के अलावा एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में भारत की विभिन्न भाषाओं का प्रयोग करने पर विचार कर सकते हैं.
22 भाषाओं में पुस्तकें
किसी भी विषय की पढ़ाई के लिए उस भाषा में पुस्तकें उपलब्ध होना अत्यंत आवश्यक है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार एनसीईआरटी की किताबें देश की क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएंगी. इन्हें 22 अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई है. यहां तक तो ठीक है लेकिन साथ ही स्थानीय भाषाओं में पढ़ानेवाले सुयोग्य शिक्षकों की व्यवस्था भी सीबीएसई के स्कूलों को करनी होगी. अपनी मातृभाषा में पढ़कर छात्र बेहतर ज्ञानार्जन करेंगे. फ्रांस, जर्मनी, रूस और चीन जैसे कितने ही देशों में वहां की भाषा में शिक्षा दी जाती है. वहां अंग्रेजी माध्यम नहीं है. इतने पर भी ये देश विज्ञान, तकनीक जैसे क्षेत्रों में अग्रणी हैं.
अभिव्यक्ति के लिहाज से मातृभाषा ही श्रेष्ठ और सामर्थ्यवान होती है. यह तर्क दिया जा सकता है कि तकनीकी शब्दों का क्या होगा तो उसके लिए पारिभाषिक शब्दावली उपलब्ध है जिसे सीखा जा सकता है. कुछ शब्दों को मूल रूप में लिखा या उच्चारित भी किया जा सकता है. हर नया प्रयोग एक साहसिक पहल के साथ शुरू होता है. दृढ़ता से उस पर कायम रहने पर निश्चित रूप से सफलता मिलती है. सीबीएसई की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरू करना एक स्वागतयोग्य कदम है. अन्य शिक्षा बोर्ड भी इसका अनुकरण करें तो शिक्षा क्षेत्र इससे लाभान्वित होगा.