नवभारत डेस्क: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक युवा लेडी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म व हत्या के विरोध में देशभर के अनेक सरकारी अस्पतालों में प्रदर्शन हुए, जिससे बड़े पैमाने पर ओपीडी की सेवाएं व रूटीन सर्जरी प्रभावित हुई। दिल्ली व कोलकाता के सरकारी अस्पताल सबसे अधिक प्रभावित हुए। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि घटना की सीबीआई द्वारा जांच कराई जाये जिसके लिए कोलकाता हाईकोर्ट ने आदेश दे दिया। यह घटना 9 अगस्त 2024 की है और इसके दो दिन बाद संदिग्ध पुलिस वालंटियर संजय रॉय (33) को गिरफ्तार किया गया।
सोचने की बात है कि जब नर्स व अन्य लोग वहां मौजूद थे तो यह भयावह घटना कैसे हो गई? क्या कोई ‘अंदरूनी’ व्यक्ति भी इसमें शामिल था ? संदिग्ध संजय रॉय नियमित पुलिसकर्मी न होने के बावजूद खुद को कोलकाता पुलिस का अधिकारी बताता था और अपनी टी-शर्ट पर केपी (कोलकाता पुलिस) लिखकर घूमता था। वह अनेक विवाह कर चुका है, जो सभी असफल रहे। पुलिस को उसके मोबाइल फोन पर पोर्न कंटेंट मिला है। पुलिस वेलफेयर बोर्ड में वालंटियर होने के कारण वह अस्पताल में बिना रोकटोक घूमता रहता था। इस कोलकाता हॉरर के कारण अस्पतालों में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर से फोकस में आ गया है। अनेक राज्यों में पहले से ही इस संदर्भ में सख्त कानून मौजूद हैं।
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अनेक नर्स भयावह दुष्कर्म व हत्या की शिकार हुई हैं, लेकिन उनके लिए न्याय हेतु लड़ाई उनके परिवारों के लिए छोड़ दी गई। स्वास्थ्य व्यवस्था में सबसे कमजोर नर्स होती हैं, उन्हीं पर ही सबसे ज्यादा खतरा मंडराता रहता है। उन्हें रोगियों के तीमारदारों की गालियां व धक्कामुक्की बर्दाश्त करनी पड़ती हैं। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। नर्सों से भी अधिक कमजोर स्थिति में महिला रोगी हैं।
अस्पतालों में 2024 में यौन हमलों की घटनाएं रिपोर्ट हुईं, उनमें हर पांच मामलों में से चार महिला रोगियों से संबंधित थे। पिछले दस वर्षों में भारत के अस्पतालों में दो दर्जन से अधिक महिला रोगियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं प्रकाश में आयी है। अस्पतालों में हिंसा से सुरक्षित रहने के लिए क्या रोगियों के पास विशेष कानून हैं? महिलाओं को प्रसूति हिंसा से सुरक्षित रखने के लिए भी कोई कानून नहीं है। स्वास्थ्य व्यवस्था में रोगी की ही स्थिति सबसे दयनीय है। अस्पतालों में सभी के लिए सुरक्षित वातावरण उत्पन्न करने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करने पर मंथन किया जाये।
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इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है। प्रदर्शनकारी डॉक्टर जो याचिका सर्कुलेट कर रहे हैं उसमें मार्च 2022 की सूरत की एक घटना का संदर्भ दिया गया है कि इमरजेंसी वार्ड के एक रोगी ने लोहे की मेज से नर्स पर हमला कर दिया था। नर्स को तीन टांके लगवाने पड़े थे। याचिका में कहा गया है, नर्स ने एफआईआर दर्ज कराई लेकिन इसके बाद कोई सूचना नहीं है कि अस्पताल या पुलिस ने क्या एक्शन लिया। अगर कोई व्यक्ति सरकारी कर्मचारी को अपनी ड्यूटी करने से रोकने के लिए चोट पहुंचाता है तो इस धारा के तहत उसे 3 वर्ष तक की कैद से दंड़ति किया जा सकता है।
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा