25 फरवरी का निशानेबाज (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, समय अत्यंत मूल्यवान है! टाइम इज मनी! गुजरा हुआ समय लौट कर नहीं आता. उसका सदुपयोग करना चाहिए. व्यर्थ समय गंवाना अच्छी बात नहीं है. कहावत है- समय चूकी पुनि का पछताने! समय चूक जाने के बाद पछता कर कोई फायदा नहीं. जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है वह मुश्किल में पड़ने के बावजूद कहता है- अपना टाइम आएगा! अमेरिका में ‘टाइम’ मैगजीन निकलती है. परीक्षा से लेकर रेलवे तक टाइमटेबल रहता है. दुनिया में समय एक सा नहीं रहता. नागपुर और न्यूयार्क के टाइम में साढ़े 10 घंटे का अंतर है।’
हमने कहा, ‘इधर-उधर की बातों में समय बरबाद मत कीजिए. जो कहना है साफ-साफ कहिए.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, समय का महत्व समझते हुए बेंगलुरू के एक व्यक्ति ने पीवीआर आइनॉक्स पर लगातार 25 मिनिट विज्ञापन दिखाकर उसका समय बरबाद करने का दावा दायर किया. वह फिल्म देखने गया था लेकिन शाम 4 बजे से 4.25 बजे तक विज्ञापन और ट्रेलर दिखाए जाते रहे. बाद में फिल्म शुरू हुई. उसे 6.30 बजे अपने काम पर लौटना था जिसमें वह लेट हो गया.’ हमने कहा, ‘इसमें कौन सी नई बात है. पीवीआर दर्शकों को इसकी आदत पड़ गई हैछ पॉपकार्न खाते रहो और विज्ञापन देखते हुए फिल्म का इंतजार करते रहो।’
पड़ोसी ने कहा, ‘उस व्यक्ति ने पीवीआर पर दावा दायर करते हुए कहा कि समय की इस तरह बरबादी से उसे मानसिक पीड़ा और असुविधा हुई. बेंगलुरू के जिला उपभोक्ता आयोग ने पीवीआर को आदेश दिया कि शिकायतकर्ता को 20,000 रुपए मुआवजा तथा शिकायत करने में आए खर्च के लिए 28,000 रुपए का अलग से भुगतान करे.’ हमने कहा, ‘सभी जानते हैं कि पीवीआर की कमाई महंगा पॉपकार्न, समोसे, पानी की बोतल बेचने के अलावा ढेर सारे विज्ञापनों से होती है. दर्शक एक बार अंदर गया तो जो दिखाते हैं, उसे देखना होगा. वह दर्शक बेचैन था कि जिस फिल्म ‘सैमबहादुर’ को देखने आया था, वह कब शुरू होगी. वह 25 मिनटों तक तनावग्रस्त रहा।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, फिल्म शुरू होने के पहले डाक्युमेंट्री और विज्ञापन दिखाने का चलन पुराना है लेकिन पहली बार ऐसा सजग दर्शक निकला जिसने समय की बरबादी को मुद्दा बनाकर विज्ञापनों की भरमार को चुनौती दी अधिकांश लोग उससे सहमत होंगे।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा