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निर्जला एकादशी को क्यों कहते हैं भीमसेनी एकादशी, महर्षि वेदव्यास से क्या है इसका संबंध, जानिए पौराणिक कथा

निर्जला एकादशी, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत कठिन लेकिन फलदायक होता है और इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।

  • By सीमा कुमारी
Updated On: Jun 06, 2025 | 01:19 PM

निर्जला एकादशी (सौ.सोशल मीडिया)

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आज निर्जला एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। भगवान विष्णु को समर्पित इस एकादशी को साल की सबसे बड़ी और सबसे कठिन एकादशी मानी जाती है। ज्योतिषयों के अनुसार, निर्जला एकादशी का दूसरा नाम भीमसेनी एकादशी भी है क्योंकि भीम ने भी यह व्रत किया था।

आपको बता दें, हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस एक व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य मिलता है।

इस दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत रखने का विशेष नियम है, इसलिए इसे ‘निर्जला’ कहा जाता है। निर्जला एकादशी को लेकर एक भीम से जुड़ी एक कथा भी प्रसिद्ध है कि क्यों इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा? आइए जानते हैं कि इससे जुड़ी रोचक कथा

क्यों कहा जाता है?  निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पांडवों ने महर्षि वेदव्यास से पूछा कि एकादशी व्रत का पालन कैसे करें और इसके क्या लाभ है।

तब महर्षि वेदव्यास जी ने कहा कि साल में 24 एकादशियां आती हैं और सभी एकादशी का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्रत करने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य फल की होती है।

यह सुनकर भीमसेन ने चिंता व्यक्त की। भीम ने कहा, मैं बहुत बलशाली हूं, लेकिन भोजन के बिना रहना मेरे लिए असंभव है। मैं सभी नियमों का पालन कर सकता हूं पर उपवास नहीं कर पाता।

क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मैं एक ही दिन व्रत करूं और साल भर की सभी एकादशियों का फल मिल जाए? तब महर्षि वेदव्यास ने कहा “हे भीम! तुम्हारे लिए एक ही उपाय है कि तुम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को उपवास करो, जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।

इस दिन अन्न और जल का का त्याग कर भगवान विष्णु की पूजा करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।

यह भी पढ़ें- निर्जला एकादशी पर भद्रा का साया, क्या होगा इसका असर, भूल से भी न करें ये गलतियां

इस व्रत में बिना जल ग्रहण किए उपवास करना अनिवार्य है, इसलिए इसे ‘निर्जला’ कहा जाता है। यह व्रत कठिन जरूर है, लेकिन इसके फल अपार है। यह व्रत पापों का

नाश करता है और मोक्ष प्रदान करता है। भीमसेन ने व्यास जी की बात मानते हुए निर्जला एकादशी का कठोर व्रत किया। उन्होंने दिनभर न तो जल पिया और न ही अन्न ग्रहण किया।

अंत में भगवान विष्णु की कृपा से भीम को अक्षय पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

Why nirjala ekadashi called bhimseni ekadashi

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Published On: Jun 06, 2025 | 01:19 PM

Topics:  

  • Ekadashi Fast
  • Lord Vishnu
  • Religion

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