त्रिपुरारी पूर्णिमा क्या होती है (सौ.डिजाइन फोटो)
Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा की तिथि का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है। इस पूर्णिमा के मौके पर गंगा का स्नान करना फलदायी माना जाता है जिसे करने से आपको पुण्यों की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान करने की परंपरा होती है। क्या आप जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आखिर पूर्णिमा से भगवान शिव का क्या कनेक्शन है चलिए जानते है इसके बारे में।
कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है जिसका अलग कनेक्शन होता है। इस कार्तिक पूर्णिमा का भगवान शिव से नाता एक पौराणिक कथा के आधार पर लिया जाता है। यहां पर इसका उल्लेख शिवपुराण से लिया गया है। इसके अलावा आज के दिन सिख धर्म का पर्व गुरु पूर्णिमा भी मनाया जाता है।
यहां पर कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी त्रिपुरारी पूर्णिमा को लेकर इस प्रकार की पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार एक समय की बात हैं, तारकासुर नामक दैत्य के तीन पुत्र थे, जिनके नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली था। बताया जाता है कि, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तीनों राक्षस में से एक तारकासुर दैत्य का वध किया था जिससे उसके बेटों को बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा जिसके बाद उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
ये भी पढ़ें-गुरुवार के दिन श्री ‘विष्णु सहत्रनाम्’ की पाठ के साथ करें ये उपाय, बनेंगे धन-वैभव के साथ मान-सम्मान के योग
इसके बाद तीनों दैत्यों ने ब्रह्माजी से कहा कि आप हमारे के लिए तीन नगरों का निर्माण करवा दीजिए इसके बाद आप हम इन नगरों में बैठकर पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहे और एक हजार साल बाद हम एक ही जगह पर मिलें। जब हम तीनों एक जगह पर मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं और जो भी देवता एक ही तीर से इन नगरों को नष्ट कर सकेगा वही हमारी मृत्यु का कारण होगा. ब्रह्माजी ने उन्हें तथास्तु कहा।
यहां पर आगे ब्रम्हाजी का वरदान मिलने के बाद तीनों राक्षस खुश हुए और और ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. इनमें से एक नगरी सोने की, एक चांदी और एक लोहे की थी. सोने की नगरी तारकाक्ष को मिली, चांदी की नगरी कमलाक्ष और लोहे की विद्युन्माली को मिली। तीनों ने अपनी-अपनी नगरी पर अधिकार कर लिया लेकिन नगरी मिलने के बाद सभी राक्षस सभी देवता भगवान शिव के पास उनसे त्रिपुरों को नाश करने को कहा. भगवान शिव इसके लिए तैयार हो गए और उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से एक दिव्य रथ तैयार करवाया।
ये भी पढ़ें-आज मनाया जा रहा है वर्ल्ड डायबिटीज डे, जानिए इस बीमारी के लक्षण और कंट्रोल करने के टिप्स
त्रिपुरों का संहार करने के लिए देवताओं ने भी अपना पूरा सहयोग दिया. भगवान शिव के रथ के घोड़े इंद्र, वरुण, यम और कुबेर बने. वहीं चंद्रमा और सूर्य उस दिव्य रथ के पहिए बने. हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बने. भगवान विष्णु स्वंय बाण बने. फिर भगवान शिव उस दिव्य रथ पर सवार होकर त्रिपुरों का संहार करने गए. इस दौरान देवताओं और दैत्यों के बीच भयंकर युद्ध हुआ और युद्ध करते समय त्रिपुर एक सीध में आ गए. जैसे वह तीनों एक सीध में आए तो भगवान शिव ने बाण चलाकर उनका संहार कर दिया. त्रिपुरों का अंत करने की वजह से भगवान शिव को त्रिपुरारी कहते हैं और इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं.