क्यों रखती हैं महिलाएं छठ का कठिन व्रत (सौ.सोशल मीडिया)
Chhath Vrat Benefits: शनिवार, 25 अक्टूबर से लोक आस्था का महापर्व ‘छठ पूजा’ शुरू होने जा रही है। यह पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस पर्व की लोकप्रियता न केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में देखी जाती है बल्कि पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ इस महापर्व को मनाया जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला कठिन व्रत कठोर तपस्या, प्रकृति प्रेम और सूर्य देव के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक माना जाता है।
आपको जानकारी के लिए बता दें, इस महापर्व की तैयारी पांच दिवसीय दिवाली उत्सव के बाद शुरू हो जाती है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व महिलाओं द्वारा मुख्य रूप से अपनी संतान की लंबी आयु, परिवार के सुख-समृद्धि और मनोवांछित संतान की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। ऐसे में आइए जान लेते है आखिर महिलाएं क्यों रखती हैं यह कठिन व्रत और क्या है इसका महत्व।
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व महिलाओं द्वारा मुख्य रूप से अपनी संतान की लंबी आयु, परिवार के सुख-समृद्धि और मनोवांछित संतान की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत का सबसे बड़ा और प्राथमिक महत्व संतान सुख से जुड़ा है।
महिलाएं अपनी संतान की रक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए यह 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है।
यह व्रत नि:संतान दंपत्तियों के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है। मान्यता है कि छठी मैया (षष्ठी देवी) की आराधना से उन्हें पुत्र या पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है और उनकी सूनी गोद भर जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। वे सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति का छठा अंश हैं। यह भी मान्यता है कि ये सूर्य देव की बहन हैं, इसलिए छठ पर्व पर सूर्य के साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है।
छठ पूजा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव की उपासना की जाती है। सूर्य को आरोग्य, ऊर्जा और जीवन का दाता भी माना गया है।
सूर्य को आरोग्य का देवता कहा जाता है। छठ व्रत रखने से व्रतियों और उनके परिवार को उत्तम स्वास्थ्य, तेज और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी, सुबह और शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की ऊर्जा शरीर को लाभ पहुंचाती है और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
सूर्य देव को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी यह व्रत रखती है।
निर्जला व्रत- 36 घंटे तक यह व्रत लगभग 36 घंटों तक चलता है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाला) को न तो कुछ खाना होता है और न ही पानी पीना होता है। इतने लंबे समय तक बिना पानी के रहना शारीरिक सहनशक्ति की एक कठिन परीक्षा है।
छठ पर्व की शुरुआत से लेकर समापन तक शुद्धता और पवित्रता के बहुत कड़े नियम होते हैं, जिनका चार दिनों तक सख्ती से पालन करना होता है। इसमें व्रती को अपने हाथ से ही सारा काम करने की निष्ठा रखनी पड़ती है।
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कार्तिक मास की ठंडी ऋतु में व्रती को नदी, तालाब या घाट पर ठंडे जल में घंटों खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देना होता है, जो शारीरिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।