शरद पूर्णिमा के दिन क्यों बनती है ‘खीर’(सौ.सोशल मीडिया)
Sharad Purnima kheer 2025: आज 6 अक्टूबर 2025 को शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है। इस शुभ दिन को अमृत की वर्षा का दिन भी कहा जाता है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस शुभ तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही, श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में अन्न, वस्त्र और धन का दान किया जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इन शुभ कार्यों को करने से जातक को सभी पापों से छुटकारा मिलता है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही, आपको बता दें, शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा की रोशनी में खीर बनाने की भी परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है। अगर नहीं, तो यहां पढ़ें शरद पूर्णिमा और खीर की परंपरा से जुड़ी बातें।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, हर साल शरद पूर्णिमा के पर्व को धन की देवी मां लक्ष्मी का प्राकट्योत्सव के रूप में बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी उत्पन्न हुई थीं।
वहीं, दूसरी मान्यता है कि द्वापर युग में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने धवल चांदनी में महारास किया था। इससे चंद्र देव ने प्रसन्न होकर अमृत की वर्षा की थी। इसी वजह से शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा की रोशनी में खीर को रखा जाता है, जिससे उस खीर में अमृत मिल जाता है। अगले दिन इसका सेवन किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की इस रात चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर में अमृत की वर्षा होती है और यह खीर खाने से स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं, शरीर की गर्मी कम होती है और धन-समृद्धि आती है। यह खीर चर्म रोगों से मुक्ति दिलाने और आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी सहायक मानी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें अमृत के समान होती हैं और इस रोशनी में रखी खीर में यह अमृत मिल जाता है, जिससे इसमें औषधीय गुण आ जाते हैं।
शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से अच्छी सेहत का वरदान और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है। इस खीर को खाने से व्यक्ति का चंद्रदोष दूर होने के साथ माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।
ऐसी मान्यता है कि इस खीर को खाने से शरीर की गर्मी कम होती है, पित्त दोष कम होता है और कई बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है।
शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी का प्राकट्योत्सव भी मनाया जाता है और इस खीर को मां लक्ष्मी को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में खाने से उनका आशीर्वाद मिलता है, जिससे धन-दौलत और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन गाय के दूध, चावल और चीनी से खीर बनाएं। रात में बनी खीर को एक बर्तन में डालकर छत या बालकनी में खुले आसमान के नीचे रख दें। खीर को छलनी से ढक दें ताकि उसमें कीड़े आदि न गिरें।
फिर इस खीर को रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है, ताकि उसमें अमृत की बूंदें गिर सकें। अगले दिन सुबह इस अमृतयुक्त खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
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पंचांग के मुताबिक, 6 अक्टूबर को भद्रा काल दोपहर 12:23 मिनट से शुरू होगा और 6 अक्टूबर रात 10:53 मिनट पर समाप्त होगा। भद्रा काल समाप्त होने पर ही शरद पूर्णिमा की खीर चंद्रमा की छाया में रखनी चाहिए।
6 अक्टूबर को रात 10:37 बजे से लेकर 7 अक्टूबर रात 12:09 मिनट के दौरान आप किसी भी समय खीर रख सकते हैं।