दक्षिण भारत का थाईपुसम का त्योहार (सौ.सोशल मीडिया)
Thaipusam 2025: भारत संकृतियों और परंपराओं से सजा हुआ एक देश है यहां पर हर हिस्से में कोई ना कोई त्योहार मनाया जाता है। सभी त्योहारों का महत्व होता है इसमें ही दक्षिण भारत में खास त्योहार और मान्यताएं प्रचलित है। 11 फरवरी को थाईपुसम दक्षिण भारत में मनाया जाता है इसका नाता भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय से होता है। इने मुरुगन के नाम से यहां पर जानते है पूजन करते है चलिए जानते हैं इस खास त्योहार का महत्व और शुभ मुहूर्त…
यहां पर हिंदू पंचाग के अनुसार, पूसम् नक्षत्र का प्रारम्भ सोमवार, 10 फरवरी को शाम 6 बजकर 1 मिनट पर होगा वहीं पर इसमें पूसम् नक्षत्र का समाप्त अगले दिन यानी मंगलवार 11 फरवरी को शाम 6 बजकर 34 मिनट पर होगा. जिसके हिसाब से थाईपूसम का पर्व मंगलवार, 11 फरवरी को मनाया जाएगा.
इस थाईपूसम त्योहार से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है कहा जाता है कि,एक बार ‘सोरापदमन’ नाम के एक दानव था. जिसे यह वरदान मिला कि उसे सिर्फ भगवान शिव की संतान ही हरा सकती है. इसके अलावा उस दानव को कोई भी नहीं मार सकता था. इसमें एक और शर्त थी कि शिव की संतान का जन्म किसी महिला से नहीं होना चाहिए. इस वरदान के चलते सोरापदमन बहुत अहंकारी हो गया. वो स्वयं को अजेय-अमर मानकर सब पर अत्याचार करने लगा और तीनों लोकों को जीतना शुरू कर दिया.तीनो लोक में सोरापदमन अत्याचार बढ़ने लगा. उसकी प्रताड़ना से बचने के लिए सभी देवों ने भगवान शिव को प्रसन्न किया, और उनसे ऐसी संतान की मांग की, जिससे ‘सोरापदमन’ को मारा जा सके।
आगे की कथा में, तब भगवान शिव ने पुत्र ‘मुरुगन’ जिनको कार्तिकेय या सुब्रमण्यम के रूप में भी जाना जाता है, उनको अपने माथे की लपटों से उत्पन्न किया. इसके बाद माता पार्वती ने मुरुगन को सोरापदमन को हराने के लिए एक वेल, यानी दिव्यास्त्र दिया. भगवान मुरुगन ने तुरंत सभी लोकों पर नियंत्रण कर लिया और सोरापदमन तथा उसकी सेना का वध कर सभी देवताओं को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई. तभी से इस दिन थाईपूसम का विशेष उत्सव मनाया जाता है, और ये दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।
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आपको बताते चलें कि, यहां पर थाईपूसम त्योहार दक्षिण भारत तक ही सीमित नहीं है इसे विदेशों में भी धूमधाम के साथ मनाते है। इस खास त्योहार को श्रीलंका, अफ्रीका, अमेरिका, थाईलैंड जैसे दूसरे देशों में भी तमिल समुदाय के लोग बहुत ही उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार के दौरान दक्षिण भारतीय रीति रिवाजों को अपनाया जाता है।