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श्री राम ही नहीं बल्कि कृष्ण ने भी तोड़ा था शिव जी की धनुष, पढ़ें मजेदार ये कहानी

सीता स्वयंवर की कहानी तो आप जानते ही है। इस स्वयंमवर में भगवान शिव के पिनाक धनुष का प्रयोग हुआ था। स्वयंवर की एकमात्र शर्त यह थी इस धनुष को उठाने वाले को ही सीता वरमाला पहनाएंगी

  • By शिवानी मिश्रा
Updated On: Dec 01, 2024 | 10:08 AM

(कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)

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नई दिल्ली:  सीता स्वयंवर की कहानी तो आप जानते ही है। इस स्वयंमवर में भगवान शिव के पिनाक धनुष का प्रयोग हुआ था। स्वयंवर की एकमात्र शर्त यह थी इस धनुष को उठाने वाले को ही सीता वरमाला पहनाएंगी। परिस्थिति के अनुसार सभी राजा-महाराजाओं ने इसे आजमाया, लेकिन इसे हिला तक नहीं सके।

अंत में भगवान राम ने न केवल धनुष उठाया बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाते समय उसे तोड़ भी दिया। द्वापर में भी ऐसी ही एक घटना घटी थी। इस दौरान कंस ने धनुष यज्ञ किया। इस मामले में भगवान शिव के पिनाक धनुष का भी उपयोग किया गया था और भगवान कृष्ण ने कंस को मारने से ठीक पहले इसे तोड़ दिया था।

धनुष और उनकी शक्तियों की चर्चा

बता दें कि भगवान शिव के पास कितने भगवान शिव के पास कितने पिनाक धनुष थे और त्रेता में राजा जनक तो द्वापर में कंस के पास कैसे पहुंचा। पिनाक धनुष के बारे में पौराणिक ग्रंथों में कई कहानियां मिलती हैं। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथों से दो धनुष बनाए थे। दोनों धनुष न केवल बहुत बड़े थे, बल्कि बहुत भारी भी थे। दोनों धनुषों में अनन्त शक्ति थी। इसकी मुख्य शक्ति यह थी कि यह धनुष इसे चलाने वाले की इच्छा के आधार पर किसी को भी मारने की क्षमता रखता था। भगवान शिव ने ये दोनों धनुष माता सती के साथ विवाह के बाद बनाए थे।

(कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)

जब माता सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में योगाग्नि में प्रवेश कर रही थी तो क्रोधित होकर भगवान शिव ने धनुष का प्रयोग किया। जैसे ही उन्होंने इस धनुष की प्रत्यंचा खींची, पृथ्वी डोलने लगी। बादल फट गये और आपदा की स्थति बन गई थी। उस समय सभी देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की। इससे उनका क्रोध शांत हो गया और उन्होंने उन्होंने उसी समय उस धनुष का त्याग कर दिया था।

भगवान परशुराम ने धनुष को राजा जनक निमि को दिया

इसके बाद भगवान परशुराम ने इस धनुष को राजा जनक निमि के पास रख दिया। बाद में निमि वंश के राजा सिरध्वज ने सीता स्वयंवर के लिए इस धनुष का उपयोग किया। इसी प्रकार भगवान शिव ने दूसरे धनुष का प्रयोग त्रिपुरासुर को मारने के लिए किया। इस धनुष पर एक ही तीर से भगवान शिव ने त्रिपुरासुर द्वारा स्थापित तीनों नगरों को नष्ट कर दिया। इसके बाद भगवान शिव ने कंस की तपस्या से प्रसन्न होकर ये धनुष हासिल किया। भगवान शिव ने कंस को वरदान दिया था कि इस धनुष को उठाने की क्षमता रखने वाले व्यक्ति के अलावा कोई और उसका वध नहीं कर सकता है।

कई तरह के धनुष और उनकी शक्तियों की चर्चा हमेंशा से की गई है। इसी ग्रंथ में विवरण मिलता है कि ये हथियार एक्सपायर भी होते हैं। और किसी भी अस्त्र या शस्त्र को बनाने के हमेशा से कोई ना कोई उद्देश्य होता था। जैसे ही वो उद्देश्य पूरा होता था। उस हथियार को एक्सपायर मान लिया जाता था। हलांकि सीता स्वयंवर में इस्तेमाल पिनाक धनुष का उद्देश्य भगवान राम का सीता से विवाह कराना था। इस लिए वो धनुष सीता स्वयंवर के साथ ही खत्म हो गया। इसी तरह कंस के धनुष यज्ञ में इस्तेमाल पिनाक धनुष का उद्देश्य कंस वध था। और ये धनुष भी अपने उद्देश्य के पूरा होने के साथ खत्म हो गया।

Not only shri ram but krishna also broke shivas bow read this interesting story

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Published On: Dec 01, 2024 | 10:08 AM

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