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Badrinath Dham: आखिर क्या हुआ ऐसा, जब माता लक्ष्मी ने लिया था बदरी वृक्ष का रूप, इस पौराणिक कथा में है उल्लेख

यहां पर बद्रीनाथ धाम की बात की जाए तो, यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है।कहते है जो भी भक्त इस धाम के दर्शन कर लेता है उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता।

  • By दीपिका पाल
Updated On: May 05, 2025 | 07:34 AM

बद्रीनाथ धाम का जानिए रहस्य (सौ. सोशल मीडिया)

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Badrinath Dham: उत्तराखंड से चार धाम यात्रा की शुरूआत हो गई है यह यात्रा सबसे खास तीर्थयात्रा में से एक है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की महत्ता हिंदू धर्म में खास मानी जाती है तो वहीं पर यह प्रमुख धामों में दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते है। यहां पर बद्रीनाथ धाम की बात की जाए तो, यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है।

कहते है जो भी भक्त इस धाम के दर्शन कर लेता है उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। इस धाम के नाम को लेकर पौराणिक कथा में उल्लेख किया गया है। चलिए जानते है…

जानिए बद्रीनाथ की पौराणिक कथाएं

बताया जाता है कि, पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीविष्णु अपनी तपस्या के लिए उचित स्थान देखते-देखते नीलकंठ पर्वत और अलकनंदा नदी के तट पर पहुंचे, तो यह स्थान उनको अपने ध्यान योग के लिए बहुत पसंद आया। जहां पर शिवजी के पास बाल रूप में जाकर विष्णु जी ने रोते हुए तपस्या के लिए यह स्थान मांग लिया। शिव-पार्वती से रूप बदलकर जो स्थान प्राप्त किया वही पवित्र स्थल आज बद्रीविशाल के नाम से प्रसिद्द है। इसके अलावा एक और पौराणिक कथा यह भी प्रचलित है कि, भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तो अचानक बहुत हिमपात होने लगा। तपस्यारत श्रीहरि बर्फ से पूरी तरह ढकने लगे। उनकी इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी ने वहीं पर एक विशालकाय बेर के वृक्ष का रूप धारण कर लिया और हिमपात को अपने ऊपर सहन करने लगीं।

यहां पर तपस्या में लीन भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिमपात से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बदरी वृक्ष को धारण किया था। काफी वर्षों के बाद जब श्रीविष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि उनकी प्रिया लक्ष्मी जी तो पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई हैं। तब श्री हरि ने माता लक्ष्मी के तप को देखकर कहा-‘हे देवी! तुमने मेरे बराबर ही तप किया है इसलिए आज से इस स्थान पर मुझे तुम्हारे साथ ही पूजा जाएगा और तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है अतः आज से मुझे ‘बदरी के नाथ’ यानि बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।” इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा।

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जानिए बद्रीनाथ में क्या है खास

यहां पर बताते चलें कि, बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जोशीमठ में जहां शीतकाल में बद्रीनाथ की चल मूर्ति रहती है,वहां नृसिंह का एक मंदिर स्थित है वहीं पर यहां कि, शालिग्राम शिला में भगवान नृसिंह का अद्भुत विग्रह नजर आता है। इसके अलावा इस विग्रह में बायीं भुजा पतली है और समय के साथ यह और भी पतली होती जा रही है।जिस दिन इनकी कलाई मूर्ति से अलग हो जाएगी उस दिन नर-नारायण पर्वत एक हो जाएंगे। जिससे बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा,कोई यहां दर्शन नहीं कर पाएगा। यहां मंदिर के पास एक शिला है। इस शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आधी आकृति नज़र आती है। आकृति के पूरे कर लेने के बाद यहां पर हर कोई को बद्रीनाथ के दर्शन का लाभ मिल सकता है। कहते यह भी है कि, सतयुग में भगवान विष्णु स्वयं इस जगह पर साक्षात दर्शन करते थे। शास्त्रों में वर्तमान बद्रीनाथ यानि बद्री विशाल धाम को भगवान का दूसरा निवास स्थान बताया गया है।

Mother lakshmi had taken the form of badri tree

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Published On: May 05, 2025 | 07:34 AM

Topics:  

  • Badrinath Temple
  • Chardham Yatra
  • Religion

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