मां चंद्रघंटा पूजा (सो.सोशल मीडिया)
Maa Chandraghanta puja: 5 अक्टूबर, शनिवार को शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां का यह स्वरूप अत्यंत तेजमयी और शक्ति स्वरूपा माना गया है। मां के मस्तक पर अर्द्धचंद्र के आकार का घंटा शोभित है इसलिए मां के इस रूप का नाम चंद्रघंटा पड़ा है।
कहा जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन जो भी जातक माता के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना करता है, उसे माता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। ऐसे में आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा से जुड़ी बातें, पूजा विधि और महत्व के बारे में-
मां चंद्रघंटा का स्वरूप
धर्म शास्त्रों के अनुसार, मां चंद्रघंटा ने राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों की शक्तियां समाहित हैं। ये अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा धारण करती हैं। इनके माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है। इसलिए ये चंद्रघंटा कहलाती हैं। भक्तों के लिए माता का ये स्वरूप सौम्य और शांत है।
ऐसे करें चंद्रघंटा की पूजा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए खासकर लाल रंग के फूल चढ़ाएं। इसके साथ ही फल में लाल सेब चढ़ाएं। भोग चढ़ाने के दौरान और मंत्र पढ़ते वक्त मंदिर की घंटी जरूर बजाएं। क्योंकि मां चंद्रघंटा की पूजा में घंटे का बहुत महत्व है।
मान्यता है कि, घंटे की ध्वनि से मां चंद्रघंटा अपने भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बरसाती है। मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयस्कर माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं।
मंत्रों का करें जाप
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्
मां चंद्रघंटा की पूजा की महिमा
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा का बड़ा महत्व है। कहते है,मां चंद्रघंटा की आराधना से साधकों को चिरायु,आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।
इनकी आराधना से प्राप्त होने वाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि साधक में वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। उसके मुख, नेत्र तथा सम्पूर्ण काया में कांति वृद्धि होती है एवं स्वर में दिव्य-अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। क्रोधी, छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाने, तनाव लेने वाले और पित्त प्रकृति के लोग मां चंद्रघंटा की भक्ति करें।