छठ पूजा इस दिन से शुरु जानिए कौन हैं छठी मैया
सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा का प्रारंभ 5 नवंबर 2024 से हो रही है। जिसका समापन 8 नवंबर को होगा। यह त्योहार पूरे भारत में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ होता है। फिर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ व्रत करने के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूरज को जल देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है।
इस व्रत में संतान की लंबी आयु, उज्ज्वल भविष्य और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। छठ का व्रत काफी कठिन होता है, क्योंकि इसमें व्रती को 24 घंटों से अधिक समय तक निर्जला व्रत रखना होता है। इस व्रत में मुख्य रूप से सूर्यदेव और छठ माता की उपासना की जाती है और उगते वह अस्त होते सूर्य को जल दिया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्यों किया जाता है छठ पर सूर्य पूजन और कौन हैं छठ माता-
जानिए कौन हैं छठी माता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, छठ माता को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा जाता है। कहा जाता है कि इनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र की मनोकामना पूरी हो जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्य देव की बहन भी कहा जाता है।
आखिर क्यों दिया जाता है सूर्यदेव को अर्घ्य
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ पर्व का आरंभ महाभारत काल के समय में माना जाता है। कर्ण का जन्म सूर्य देव के द्वारा दिए गए वरदान के कारण कुंती के गर्भ से हुआ था। यही कारण है कर्ण सूर्य पुत्र कहलाते हैं और सूर्यनारायण की कृपा से इनको कवच व कुंडल प्राप्त हुए थे व सूर्य देव के तेज और कृपा से ही ये तेजवान व महान योद्धा बने।
कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और इस पर्व की शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने ही सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य पूजा करते थे और उनको अर्घ्य देते थे।
आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। इस संबंध में एक कथा और भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट कौरवों से जुए में हार गए थे। तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। इस व्रत से पांडवों को उनका सारा राजपाट वापस मिल गया था। इन्ही आस्था और विश्वास के साथ लोग हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व मनाते हैं।
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