गुमला दुर्गा पूजा (सौ. सोशल मीडिया)
Durga Puja 2025: शारदीय नवरात्रि का दौर चल रहा है। नवरात्रि के इस खास दौर में दुर्गा पूजा का भी खास महत्व होता है। दुर्गा पूजा को लेकर वैसे तो कई परंपराएं मानी जाती है लेकिन झारखंड के गुमला जिले की परंपरा 100 साल पुरानी है। यहां पर दुर्गा पूजा के मौके पर श्री दुर्गाबाड़ी मंदिर में बंगाली रीति-रिवाज के अनुसार सादगी से मां की पूजा की जाती है।
इसके अलावा यहां पर दुर्गा पूजा के मौके पर विशेष तरह के भोग भी अर्पित किए जाते है। चलिए जानते है इस परंपरा के बारे में और कैसे इस परंपरा की शुरुआत हुई है।
झारखंड के गुमला जिले में यह परंपरा 1921 में शुरु हुई थी, जहां यह पूजा सबसे पहले जशपुर रोड के डेली मार्केट के समीप स्थित श्री दुर्गाबाड़ी मंदिर में की गई थी। इसके बाद ही श्री श्री सनातन दुर्गा पूजा कमेटी के बैनर तले छोटे से खपड़ैल मकान में इस पूजा की शुरुआत की गई थी। वहीं पर दुर्गाबाड़ी की यह पूजा आज भी ऐतिहासिक महत्व रखती है। यहां पर दुर्गाबाड़ी की परंपरा की बात की जाए तो, बंगाली रीति-रिवाज के साथ दुर्गा पूजा की जाती है।
मूर्ति निर्माण से लेकर साज-सज्जा, रंगाई-पुताई और ढाक बजाने तक की सभी प्रक्रियाएं बंगाल से आए कलाकारों द्वारा संपन्न की जाती हैं। इसके अलावा चौथी पीढ़ी द्वारा मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का काम किया जाता है। ढाक बजाने वाले भी बंगाल से आते हैं और वर्षों से यहां काम कर रह रहे है।
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यहां पर गुमला की दुर्गाबाड़ी में बंगाली रीति-रिवाज की पूजा के महाअष्टमी के दिन मां दुर्गा को विशेष भोग चढ़ाया जाता है। यह भोग दरअसल 108 थालियों में चढ़ाया जाता है, जिसे पूरी शुद्धता और परंपरागत तरीके से तैयार किया जाता है। परंपरा के अनुसार, भोग तैयार करने का काम दीक्षित और उपवासी महिलाएं करती हैं, जो पूरे नवरात्र उपवास करती हैं. लकड़ी के चूल्हे पर पूरी, हलुआ, चावल, दाल, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, फल, और मिठाई जैसे व्यंजन बनाकर मां को अर्पित किए जाते हैं। वहीं पर भोग के अलावा आरती भी की जाती है। दुर्गाबाड़ी में विजयदशमी के दिन एक और महत्वपूर्ण परंपरा निभाई जाती है जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है. इस दिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और मिठाई खिलाकर सुख, शांति और समृद्धि की कामना करती हैं। यह परंपरा 100 सालों से जीवित है जो जारी रहेगी।