पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार, फोटो - सोशल मीडिया
पटना : बिहार में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ चुका है। भारतीय जनता पार्टी ने इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने का मन बना लिया है। यही वजह है कि पार्टी ने राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर इंटरनल सर्वे करवा कर विधायकों के परफॉर्मेंस की गहराई से जांच-पड़ताल शुरू कर दी है। इस सर्वे से साफ हो गया है कि भाजपा इस बार जीत को लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, जिन मौजूदा विधायकों का परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं पाया गया है, उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है। खासकर वे विधायक जो सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं लेकिन ग्राउंड पर जीरो वर्क कर रहे हैं, उन्हें भी इस बार बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। भाजपा का मानना है कि जनता अब फील्ड वर्क देखती है, सिर्फ डिजिटल प्रचार से बात नहीं बनने वाली।
प्रभात खबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा ने आगामी चुनाव के लिए टॉप स्ट्राइक रेट मिशन तैयार किया है। इसके तहत कमजोर विधायकों को हटाकर ऐसे नए चेहरों को मौका देना है, जो जनता से जुड़े हों और जमीन पर एक्टिव हों और चुनाव जीतने की पूरी क्षमता रखते हों। पार्टी ने ब्लॉक स्तर की बैठकें, कार्यकर्ता फीडबैक और पिछले चुनावी आंकड़ों के आधार पर ये मूल्यांकन किया है।
इस बार भाजपा ने साफ कर दिया है कि टिकट वितरण में वरिष्ठता या नजदीकी नहीं, बल्कि वोटर कनेक्शन और जीतने की क्षमता सबसे अहम होगी। यानी चाहे कोई कितना भी पुराना नेता क्यों न हो, अगर परफॉर्मेंस कमजोर है तो टिकट की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।
पार्टी को इस बात का भी अहसास है कि टिकट कटने से कुछ नेता बगावत या पाला बदल सकते हैं। इसलिए भाजपा पहले से ही ऐसे नेताओं की पहचान कर डैमेज कंट्रोल* की रणनीति बना रही है। पार्टी चाहती है कि किसी भी तरह का असंतोष चुनावी तैयारियों पर असर न डाले।
भाजपा ने सिर्फ अपने घर की सफाई नहीं की है, बल्कि विपक्षी दलों और पाला बदलने वाले नेताओं की भी सीट-दर-सीट समीक्षा की है। इससे पार्टी को हर सीट पर बूथ से लेकर उम्मीदवार तक की रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।