केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ी है। जिसके कारण भारत की आर्म्ड फोर्सेस की सुरक्षा के लिए बाहरी देशों से सुरक्षा उपकरण इंपोर्ट नहीं किए जा रहे है, यही कारण है कि भारत का डिफेंस बजट सीमित है।
डिफेंस सेक्टर (सौ. सोशल मीडिया )
पिछले कई सालों की तरह इस बार भी देश के बजट में जीडीपी में रक्षा क्षेत्र की हिस्सेदारी में कोई खास बढ़त नहीं होने वाली है। पिछली बार डिफेंस के लिए जीडीपी की दर 2.4 प्रतिशत देना तय किया गया था। इस बार भी डिफेंस का जीडीपी शेयर 1.9 प्रतिशत से 2 प्रतिशत के बीच ही रहने वाला है।
हालांकि इसका मतलब ये तो बिल्कुल भी नहीं है कि रक्षा क्षेत्र की मजबूती पर भारत सरकार का ध्यान नहीं है या इसे इग्नोर किया जा रहा है। साथ ही ऐसा भी नहीं है कि खर्च नहीं बढ़ाने के कारण डिफेंस सेक्टर की मजबूती प्रभावित हो रही है, बल्कि सच्चाई इसके विपरीत है।
डिफेंस बजट को ना बढ़ाने का कारण ये भी है कि भारत धीरे-धीरे रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होता जा रहा है। यहां तक कि भारत रक्षा सौदों में निर्यात भी कर रहा है। देश में हाईटेक मारक हथियार बनने के कारण उनकी लागत कम पड़ रही है।
देश में कम बजट में बनने वाले हथियार भी धरती और पानी से लेकर आसमान तक में दुश्मन को मार गिराने में सक्षम हैं। विदेश से डिफेंस इंपोर्ट में कमी आने के कारण डिफेंस बजट में बहुत ज्यादा बढ़त नहीं होने पर भी भारतीय सेना ज्यादा ताकतवर हो रही है।
चीन, अमेरिका और रूस के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट भारत का है। हालांकि भारत से ज्यादा रक्षा बजट वाले तीनों देशों का ज्यादातर खर्च एडवांस टेक्नोलॉजी जैसे आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस या साइबर वारफेयर पर होता है।