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इन मंदिरों में भगवान श्री गणेश के अष्टविनायक स्वरूप का करें दर्शन, पुराणों में मिलता है मंदिर का जिक्र

भगवान श्री गणेश जी के 10 दिनों का दौर जहां पर चल रहा है वहीं पर इन दिनों में भगवान गणपति की पूजा भक्त बड़े ही उत्साह के साथ कर रहे है। इस दौरान आपने भगवान के कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे लेकिन क्या आप अष्टविनायक मंदिरों के बारे में जानते है। इन मंदिरों की खासियत और मान्यताएं सबसे अलग स्थान रखती है।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Sep 13, 2024 | 12:30 PM
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भगवान श्री गणेश जी के 10 दिनों का दौर जहां पर चल रहा है वहीं पर इन दिनों में भगवान गणपति की पूजा भक्त बड़े ही उत्साह के साथ कर रहे है। इस दौरान आपने भगवान के कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे लेकिन क्या आप अष्टविनायक मंदिरों के बारे में जानते है। इन मंदिरों की खासियत और मान्यताएं सबसे अलग स्थान रखती है।

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मयूरेश्वर गणेश मंदिर- महाराष्ट्र के पुणे जिले में बारामती तालुका में मोरगांव नाम में यह मयूरेश्वर विनायक मंदिर स्थित है। इसका स्वरूप मोर के जैसा है, इस कारण इसे मोरगांव कहते हैं। इस मंदिर का निर्माण काले पत्थर से हुआ है। दूर से देखने में मंदिर मस्जिद को चित्रित करता है, क्योंकि मुगल काल में मंदिरों को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए इसका निर्माण किया था।

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सिद्धिविनायक गणेश मंदिर- महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के काराट तालुका के सिद्धटेक में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर आठ अष्टविनायक में से एक है।सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ी पर है, जिसका मुख उत्तर की ओर है। मंदिर के पश्चिम भाग में शंकर जी और देवी शिवी का छोटा सा मंदिर है। इसका निर्माण इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया।

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बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर- महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में अम्बा नदी के पास पाली गांव में यह मंदिर स्थित है। कहते है भगवान गणेश ने यहां ब्राह्मण वेश में बल्लाल को दर्शन दिया और हमेशा के लिए यहां वास करने का वरदान दिया। लकड़ी के द्वारा निर्मित इस मेंदिर में यूरोपियन शैली की विशाल घंटी है और वहीं पर दक्षिणायन के समय सूर्य उदय होने पर सूर्य की किरणें भगवान गणेश पर पड़ती हैं।

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गिरिजात्मज अष्टविनायक गणेश मंदिर- महाराष्ट्र में पुणे जिले के जुन्नार तालुका में स्थित इस मंदिर का नाम भगवान गणेश की माता पार्वती (गिरिजा) के नाम पर पड़ा है। भक्तों को 307 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ी पर जाना होता है।यह वही स्थान है, जहां माता पार्वती ने गणेश जी की मूर्ति को आकार दिया और मिट्टी की मूर्ति जीवित हो गई।

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चिंतामणी विनायक मंदिर - महाराष्ट्र के पुणे जिले के हवेली तालुका के थेऊर में स्थित इस मंदिर के पास तीन नंदियों मूला नदी, मुथा नदी और भीमा नदी का पवित्र संगम मिलता है। कपिल मुनि के आह्वान पर भगवान गणेश ने गणासुर का वध कर चिंतामणि वापस प्राप्ति की और कपिल मुनि ने गणपति को वहीं वास करने की प्रार्थना की। यहां पर स्वयंभू प्रतिमा देखने के लिए मिलती है।

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विघ्नेश्वर मंदिर- महाराष्ट के ओझर जिले में स्थित विघ्नेश्वर गणपति मंदिर अपने सोने के कलश के लिए और दीपमाला यानी पत्थर के खंभे के लिए जाना जाता है। यहां पर पहुंचने के लिए आपको पुणे से 85 किमी का सफर तय करना पड़ता है।

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महागणपति मंदिर -महाराष्ट्र के पुणे के पास राजनांदगांव का यह मंदिर अष्टविनायक मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण नौंवी या दसवीं शताब्दी में कराया गया था। कहते हैं कि माधवराव पेशवा ने मंदिर के बेसमेंट में गणपति की मूर्ति रखने के लिए कमरे का निर्माण कराया। इंदौर के सरदार भी इसका पुनर्निर्माण करा चुके है।

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वरदविनायक अष्टविनायक- महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित महाड शहर में स्थित यह मंदिर अष्टविनायक मंदिरों में से एक है।1725 में पेशवा सुभेदार रामजी महादेव बिवलकर द्वारा बनवाया गया था। पेशवा ने गणेश जी का यह मंदिर गांव को उपहार में दिया था। मंदिर झील के किनारे है, जहां से मूर्ति की खोज की गई और मूर्ति को स्थापित कर मंदिर का निर्माण हुआ।

Darshan of lord ganeshas ashtavinayaka form in these temples

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Published On: Sep 13, 2024 | 12:30 PM

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