लगभग 700 वर्ष पुराना 'चराइदेव मोइदाम' (सोर्स - सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: ‘चराइदेव मोइदाम’ का इतिहास लगभग 700 वर्ष पुराना बताया जाता है। असम में अहोम वंश के सदस्यों को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ टीलेनुमा संरचना में दफनाने की व्यवस्था ‘मोइदाम’ को शुक्रवार को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार पिछले 10 साल से इसे यूनेस्को विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल कराने को लेकर प्रयास में था, जो की अब जाकर काफी इंतेजार के बाद ‘मोइदाम’ को यूनेस्को विश्व विरासत की सूची में जगह मिली हैं। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में जगह बनाने वाली पूर्वोत्तर भारत की पहली सांस्कृतिक संपत्ति बन गई है।
यह निर्णय भारत में आयोजित किए जा रहे विश्व धरोहर समिति (WHC) के 46वें सत्र में लिया गया है। भारत ने 2023 से 2024 के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने के लिए देश की ओर से नामांकन के रूप में ‘मोइदम्स’ का नाम दिया था।
‘मोइदम्स’ पिरामिड सरीखी अनूठी टीलेनुमा संरचनाएं हैं, जिनका इस्तेमाल ताई-अहोम वंश द्वारा अपने राजवंश के सदस्यों को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दफनाने के लिए किया जाता था। चीन से आए ताई-अहोम राजवंश ने असम में मौजूद इस स्थल पर लगभग 600 साल तक शासन किया था। इस ‘चराइदेव मोइदाम’ के यूनेस्को का धरोहर बन जाने के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा ने इस अवसर पर खुशी जताई है और असम के लोगों को बधाई दी।
एजेंसी इनपुट के साथ..