यवतमाल न्यूज
Yavatmal News: यवतमाल जिला परिषद में काम कर रहे बोगस विकलांग कर्मचारियों को अब अपने प्रमाणपत्र की जांच कराकर अपनी वास्तविकता साबित करनी होगी। हालांकि, इस आदेश के बाद मुंबई में होने वाली जांच से बचने के लिए बोगस विकलांगों ने जोरदार लॉबिंग की। इसमें वे सफल भी रहे और अंततः यह जांच अब यवतमाल में ही होगी।
जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मंदार पत्की ने लिखित आदेश जारी किए हैं। इन आदेशों के अनुसार 29 और 30 सितंबर को जिला परिषद के सभागृह में ही यह जांच आयोजित होगी। इसके लिए संबंधित विकलांग कर्मचारियों को विकलांगता प्रमाणपत्र और विकलांगता के नाम पर प्राप्त सभी लाभ संबंधी दस्तावेज़ों के साथ बुलाया गया है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी कर्मचारी जांच से न बच पाए, सीईओ ने सोलह गट विकास अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी है। कर्मचारियों के विकलांगता प्रमाणपत्र की वैधता को लेकर विकलांग कल्याण विभाग को कई शिकायतें मिली हैं। इसलिए विभाग के सचिव तुकाराम मुंढे ने 34 जिला परिषदों को ऐसी जांच करने का आदेश दिया है।
आदेश आते ही यवतमाल के विकलांग कर्मचारियों की जांच मुंबई में करने की तैयारी प्रशासन ने शुरू कर दी थी। लेकिन जैसे ही इसका पता चला बोगस कर्मचारियों ने सक्रियता दिखाई और अपनी ‘सेटिंग’ चालू कर दी। उनकी यह चाल सफल हुई और अब जिला परिषद प्रशासन ने जांच यवतमाल में ही करने का आदेश दिया है।
हालांकि, सवाल यह उठता है कि यवतमाल में जिस संस्था से प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया, वही सही जांच कर पाएगी या नहीं। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर ‘सेटिंग’ लगाना भी बोगस विकलांगों के लिए आसान हो सकता है। इसलिए, यह मांग उठ रही है कि विकलांगों की जांच यवतमाल के बाहर किसी तटस्थ संस्था द्वारा की जाए।
जिला परिषद के अंतर्गत कार्यरत विकलांग अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारी शासन की विभिन्न सुविधाओं का लाभ अपने विकलांग प्रमाणपत्र के आधार पर लेते हैं। इन्हें सीधे सेवा में नियुक्ति, पदोन्नति, अतिरिक्त यात्रा भत्ता आदि मिलते हैं। जिला परिषद के सभी विकलांग कर्मचारी बोगस नहीं हैं। लेकिन कुछ लोग विकलांग न होने के बावजूद प्रमाणपत्र लेकर शासन को धोखा दे रहे हैं। इसलिए ऐसे कर्मचारियों की जांच करने के आदेश दिए गए हैं।
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विकलांगों के UID प्रमाणपत्र के साथ उनकी शारीरिक क्षमता की भी जांच होनी चाहिए। कई विकलांग केवल दिखावे के लिए हैं। कई बोगस विकलांगों ने आर्थिक लेन-देन करके प्रमाणपत्र हासिल किया है। इसलिए सिर्फ प्रमाणपत्र के आधार पर किसी को वास्तविक विकलांग मानने के बजाय इस जांच में उनकी शारीरिक क्षमता की भी परीक्षा ली जानी चाहिए।