डॉ. पंकज भोयर और राजेश बकाणे (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Ticket Selection Controversy: वर्धा जिले की छह नगर परिषदों के परिणामों ने नेताओं को आईना दिखा दिया है। वर्धा, देवली और पुलगांव में भाजपा की हार ने पार्टी नेतृत्व को आसमान से धरती पर ला पटका है। गलत प्रत्याशी चयन, गुटबाजी और अति-आत्मविश्वास के कारण भाजपा को तीन स्थानों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। आर्वी में भाजपा की जीत का दायरा काफी सिमट गया है, वहीं इस बार नगरसेवकों की संख्या भी कम हुई है।
हिंगनघाट और सिंदी रेलवे में विधायक समीर कुणावार ने अपना प्रभाव कायम रखा है। पुलगांव में पूर्व विधायक रणजीत कांबले ने जोरदार वापसी की है, जो विधायक राजेश बकाणे के लिए आंखों-ही-आंखों में चेतावनी मानी जा रही है। वर्धा नगर परिषद भाजपा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण थी। पालकमंत्री डॉ. पंकज भोयर ने पूरी कमान अपने हाथ में लेते हुए अपने विश्वासपात्र निलेश किटे को मैदान में उतारा था।
वहीं कांग्रेस ने सुधीर पांगुल को प्रत्याशी बनाकर शुरुआत में ही पालकमंत्री की रणनीति पर पानी फेर दिया। किटे को प्रत्याशी बनाए जाने से भाजपा में नाराजगी उभरकर सामने आई। प्रभागों के टिकट वितरण के समय भी अनेक दावेदार थे, जिन्हें टिकट न मिलने से उनकी नाराजगी भाजपा की हार का कारण बनी। इसके विपरित कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर पांगुल के प्रति मतदाताओं की सहानुभूति अधिक रही।
वर्ष 2016 में कांग्रेस टिकट न मिलने के बावजूद वे दूसरे स्थान पर रहे थे। आम लोगों से नम्रता से हाथ जोड़कर बात करना, हर कार्यक्रम में उपस्थित रहना और सहज उपलब्धता के कारण मतदाताओं का रुझान पांगुल की ओर अधिक रहा। इसकी तुलना में भाजपा के निलेश किटे कमजोर साबित हुए। परिणामस्वरूप, 40 सीटों में से 25 सीटें जीतकर बहुमत हासिल करने के बावजूद भाजपा नगराध्यक्ष पद नहीं जीत सकी।
यह चुनाव पांगुल बनाम पालकमंत्री के रूप में देखा गया, जिसमें पालकमंत्री की हार मानी जा रही है। कांग्रेस और राकांपा (एसपी गुट) भी वर्धा में विशेष कमाल नहीं दिखा सके। देवली में नगराध्यक्ष पद के लिए पूर्व सांसद रामदास तडस की पत्नी शोभा तडस को टिकट दिया गया।
परिवारवाद के चलते यहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। 20 सीटों में से भाजपा ने 16 सीटें जीतकर बहुमत तो प्राप्त किया, लेकिन नगराध्यक्ष पद नहीं जीत सकी। पुलगांव में भाजपा विधायक राजेश बकाणे ने अपने नेतृत्व में चुनाव लड़ा। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां सत्ता मिली थी, लेकिन इस बार पार्टी को हार झेलनी पड़ी।
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पूर्व विधायक रणजीत कांबले ने जबरदस्त वापसी करते हुए नगराध्यक्ष पद के साथ बहुमत हासिल किया। देवली और पुलगांव की हार ने बकाणे की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। आर्वी में भाजपा को नगराध्यक्ष पद के साथ बहुमत तो मिला, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी की सीटें कम हुई हैं। दादाराव केचे को दूर रखना पार्टी के लिए कुछ हद तक नुकसानदायक साबित हुआ।
हिंगनघाट और सिंदी रेलवे में भाजपा विधायक समीर कुणावार ने अपना रुतबा कायम रखा, जबकि राकांपा (एसपी गुट) के अतुल वांदिले प्रभाव नहीं दिखा सके। राकांपा (अजीत पवार गुट) को यहां मात्र पांच सीटें मिलीं। राकांपा (कांग्रेस गुट) का सांसद होने के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा।
उबाठा गुट ने हिंगनघाट और आर्वी में खाता खोलकर पार्टी के अस्तित्व का संकेत दिया है। इन नगर परिषद चुनाव परिणामों ने पूर्व सांसद रामदास तडस, पालकमंत्री डॉ। पंकज भोयर, विधायक राजेश बकाणे और सांसद काले को आत्मपरीक्षण करने पर मजबूर कर दिया है।