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महाराष्ट्र किसान आत्महत्या: वर्धा जिले में 11 माह में 189 किसानों ने मौत को गले लगाया, देखें आंकड़ें

Farmer Death Statistics: वर्धा में किसान आत्महत्या का सिलसिला नहीं थमा। 2025 के 11 महीनों में 189 किसानों ने जान दी। पगडंडी सड़कें, दाम, सिंचाई और कर्ज संकट से हालात चिंताजनक।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Dec 12, 2025 | 02:36 PM

किसान आत्महत्या (डिजाइन फोटो)

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Wardha farmer suicides: किसान आत्महत्या प्रभावित ज़िले के रूप में काला धब्बा लग चुके वर्धा में किसान बेबस होकर मौत को गले लगा रहे हैं और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। पिछले 25 वर्षों में किसानों की आत्महत्याएं रोकने में कोई सफलता नहीं मिली। साल 2025 में केवल 11 महीनों में ही 189 किसानों ने आत्महत्या का रास्ता चुना, जो अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है।

ज़िले में न पर्याप्त पगडंडी सड़कें हैं, न फसलों को उचित दाम, न परियोजनाओं से सिंचाई की सुविधा मिल सकी है। खेती की लागत कई गुना बढ़ गई है और जीवन यापन दो गुना महंगा हो गया है। दूसरी ओर लगातार नाकाम फसलें और उससे बढ़ता कर्ज किसानों के गले का फंदा बन गया है।
जनवरी से नवंबर इन 11 महीनों में 189 किसानों की आत्महत्याओं की आधिकारिक दर्ज जानकारी सामने आई है।

महीने के आंकड़ें

इसमें जनवरी में 11, फ़रवरी 29, मार्च 17, अप्रैल 28, मई 15, जून 20, जुलाई 19, अगस्त 10, सितंबर 25, अक्टूबर 13 नवंबर में 15 आत्महत्याओं का समावेश है। ज़िले के लाखों किसान प्रकृति की मार, बाज़ार की लूट और सरकारी नीतियों के दंश से पूरी तरह पिस चुके हैं। किसानों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि खेती में दूरदर्शी नीति, कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देने वाली व्यवस्था, आवश्यक सुविधाएं और लाभदायक वातावरण कब मिलेगा?

पगडंडी सड़कों की भयावह स्थिति

बरसात और बेमौसम बारिश में खेत तक पहुंचने में किसान और खेत मज़दूरों की हालत दयनीय हो जाती है। अभी तक जिले में मात्र 10 प्रतिशत पगडंडी सड़कों का ही उपयोगी खड़ीकरण हुआ है। सरकार ने कपास और सोयाबीन जैसे नगदी फसलों का समर्थन मूल्य तय किया है, लेकिन सरकारी खरीद तब शुरू होती है जब किसानों का आधे से अधिक माल व्यापारी खरीद चुके होते हैं, इस नीति पर किसानों की भारी नाराज़गी है। कृषि क्षेत्र से जुडे लोगों ने बातचीत में कहा कि आज तक की सरकारें किसानों की मूल समस्याएं सुलझाने में नाकाम रही हैं।

25 वर्षों में राहत राशि ‘जैसे की तैसी’

किसान की आत्महत्या के बाद उसके परिवार को सहारा देने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2001 से 1 लाख रुपये की सहायता राशि शुरू की थी। लेकिन पिछले 25 वर्षों में यह राशि बढ़ाई तक नहीं गई। महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है। स्वास्थ्य, शिक्षा और जरूरतों का खर्च आसमान छू रहा है, लेकिन सहायता राशि आज भी वही 1 लाख रुपये है।

यह भी पढ़ें – हम जीना चाहते है…नरखेड़ में हर महीने दो किसान दे रहे जान, बना सुसाइड केंद्र, आखिर कब जागेगी सरकार?

सत्ता व विपक्ष दोनों गंभीर नहीं

मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार लागत आधारित डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की गारंटी दी थी। बाद में कहा गया कि यह संभव नहीं है। फिर कहा कि उत्पादन दोगुना कर देंगे, लेकिन वह भी नहीं हुआ। सरकारी खरीद हमेशा तब शुरू होती है जब किसान अपनी उपज का आधे से अधिक हिस्सा व्यापारियों को बेच चुका होता है। सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ही किसानों के मुद्दों पर गंभीर नहीं हैं।

किसान आत्महत्या तो हिमखंड का सिरा है, असल में पूरा कृषि क्षेत्र संकट में है। खेती की लागत कई गुना बढ़ गई है, जीवन महंगा हो गया है। खैरात बांटने वाली योजनाएं किसानों की मूल समस्याएं हल नहीं कर सकतीं। सरकार ऐसी योजनाओं से देश में ‘ग़ुलामों की फ़ौज’ तैयार कर रही है।

  • विजय जावंधिया, वरिष्ठ किसान नेता

Maharashtra farmer suicides wardha 189 cases in 11 months

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Published On: Dec 12, 2025 | 02:36 PM

Topics:  

  • Maharashtra
  • Maharashtra Farmer Suicide
  • Wardha

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