दुर्गा बाघिन (सौजन्य-नवभारत)
Durga Tigress Rehabilitation: वर्धा में बोर टाइगर प्रोजेक्ट के बफर क्षेत्र में आने वाले रायपुर जंगल के शिवार से 10 अगस्त 2024 को करीब 9 माह की एक बाघिन शावक का सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया गया था। वन्यजीव विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस अभियान में शामिल थे। रेस्क्यू के बाद यह सामने आया कि संबंधित मादा बाघिन घायल है।
उसे तुरंत पिपरी (मेघे) स्थित करुणाश्रम में भर्ती कराया गया, जहां उसका उपचार किया गया। उपचार के दौरान वन्यजीव प्रेमियों ने उसे स्नेहपूर्वक ‘दुर्गा’ नाम दिया। अब यह ‘दुर्गा’ बाघिन पूरी तरह स्वस्थ और मजबूत हो चुकी है। बावजूद इसके, उसे उसके प्राकृतिक आवास में वापस भेजने को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों की ओर से ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है।
महाराष्ट्र में पहली बार इस रेस्क्यू के लिए ‘बामा पद्धति’ का उपयोग किया गया था। रायपुर जंगल के धुर्वे नामक किसान के खेत से दुर्गा को सुरक्षित निकालने में वन्यजीव विभाग और कुछ वन्यजीव प्रेमियों को करीब साढ़े तीन घंटे तक प्रयास करना पड़ा। सफल रेस्क्यू के बाद बाघिन की विस्तृत जांच की गई, जिसमें उसके घायल और कमजोर होने की पुष्टि हुई।
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डॉ. संदीप जोगे के मार्गदर्शन में करुणाश्रम में उसका उपचार किया गया। उपचार के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई। बोर टाइगर प्रोजेक्ट प्रशासन ने उसके पुनर्वास के लिए उच्च अधिकारियों को पत्राचार भी किया, परंतु अब तक किसी ठोस निर्णय पर अमल नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप ‘दुर्गा’ आज भी करुणाश्रम के पिंजरे में ही कैद है।
पिपरी (मेघे) के करुणाश्रम में रह रही दुर्गा को जंगल में छोड़ने से पहले उसे शिकार करना सिखाना जरूरी है। कुछ वर्ष पहले रेस्क्यू किए गए तीन बाघों को बोर टाइगर प्रोजेक्ट और पूर्व के बोर अभयारण्य में शिकार के प्रशिक्षण दिए गए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दुर्गा को भी बोर के कोर क्षेत्र में शिकारी के गुर सिखाए जाएं और उसे कॉलर आईडी लगाकर जंगल में छोड़ा जाए, तो वह जंगल में स्वयं भोजन प्राप्त कर सकेगी और भूख की शिकार नहीं बनेगी।