नागपुर स्थित विधानसभा भवन (सोर्स: सोशल मीडिया)
नागपुर: राज्य की 15वीं विधानसभा के पहले नियमित सत्र में सदन का शाही अंदाज बदला-बदला नजर आएगा। 16 दिसंबर से महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र नागपुर में शुरू होगा। नई सरकार और नए सदन में विधायकों के साथ सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि विपक्षी बेंचों पर होंगे। बंपर सफलता के साथ महायुति सरकार के खिलाफ विपक्ष की ताकत बहुत कम होगी। नागपुर की गुलाबी ठंड में शीतकालीन सत्र कितना गर्म होगा, इस पर ही विशेषज्ञों की नजरें रहेंगी।
नागपुर के सुपुत्र मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व में कई वर्षों के बाद उनकी कर्मभूमि पर शीतकालीन सत्र का आयोजन हो रहा है। 2014 से 2019 तक 5 साल और 12 दिन का कार्यकाल पूरा करने वाले फडणवीस 14वीं विधानसभा में केवल 5 दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 2024 में वह अभूतपूर्व सफलता के साथ तीसरी बार राज्य की बागडोर संभाल रहे हैं।
महायुति के पास सदन में 237 विधायक हैं जबकि विपक्षी बेंच में सिर्फ 50 सदस्य हैं। यह हॉल की अलग तस्वीर पेश करेगी। न सिर्फ सत्ता पक्ष के विधायक बल्कि मंत्री भी विपक्ष के बगल में बैठे नजर आएंगे। इसलिए यह महसूस करना सामान्य है कि मुख्यमंत्री फडणवीस अपनी ही पार्टी के विधायकों का मार्गदर्शन कर रहे होंगे। फिर भी लोकतंत्र में कम विपक्ष को भी उतना ही सम्मान मिलता है।
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चूंकि मुख्यमंत्री फडणवीस ने खुद सकारात्मक संकेत दिए हैं कि परंपरा को बरकरार रखा जाएगा, इसलिए विपक्ष की ताकत भी बढ़ गई है। उम्मीद है कि राज्य की नई सरकार में विपक्ष की भी उतनी ही सुनी जाएगी जितनी सत्ता पक्ष की। उसके लिए नागपुर सत्र बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है।
विधानमंडल सचिवालय का कहना है कि सिर्फ चर्चा होगी। तीन दिवसीय विशेष सत्र में कोई बड़ा कामकाज नहीं होने वाला है। इसके अलावा चूंकि विपक्ष के पास नई सरकार के प्रशासन की आलोचना करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए विपक्ष सरकार के गठन और मंत्रिमंडल के विस्तार पर भ्रम की स्थिति को लेकर आलोचना ही कर सकता है।
विपक्ष अगर पुरानी सरकार के कार्यकाल की बात करेगा तो यह उसके लिए भी परेशानी का सबब बनेगा। इसलिए विपक्ष ने नई सरकार आने के बाद से हुए विकास पर रणनीति बनाने का फैसला किया है। सत्र के पहले दिन 16 दिसंबर को शोक प्रस्ताव पेश किया जाएगा। सरकार कुछ सरकारी काम भी निपटाने की कोशिश में रहेगी।
दूसरे दिन से विपक्ष आक्रामक रुख अपनाएगा। इसमें प्रदेश में बेरोजगारी, महिलाओं पर अत्याचार, किसानों की समस्याएं प्रमुख होंगी। मराठा आरक्षण पर भी विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। 6 दिवसीय सत्र में प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पादों की भारी क्षति, उद्योगों का राज्य से बाहर चले जाना आदि भी विपक्ष का मुख्य हथियार होगा।
सबकी निगाहें ढाई साल तक राज्य का नेतृत्व करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार पर होंगी। शिंदे की भूमिका अब बदल गयी है। वह विधान परिषद के नेता हैं। उन्होंने राज्य की राजनीति में अपनी निर्णायक क्षमता की छाप छोड़ी है। इसलिए इस सत्र में उनकी भूमिका काफी अहम होगी।
अजित पवार के पास राज्य मंत्रिमंडल में लंबा अनुभव है। उनके पास कैबिनेट में मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे से ज्यादा अनुभव है। वे कड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए अगर उनके पास वित्तीय खाता आता है तो वे कैसे निर्णय लेंगे, इस पर हर किसी की नजर रहेगी।
2022-23 में राज्य पर 6 लाख 29 हजार 235 करोड़ रुपये का कर्ज है। साल के दौरान इसमें 82,043 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। अब यह 7 लाख 11 हजार 278 करोड़ रुपये हो गया है। इसलिए हर नागरिक पर बहुत बड़ा कर्ज है। जनकल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करते समय राशि का प्रबंधन और मितव्ययता कैसे की जाए, यह इस शीतकालीन सत्र में अनुपूरक मांगों के प्रावधान से स्पष्ट हो होगा।