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20 साल पहले राज ठाकरे ने क्यों छोड़ दी थी शिवसेना? उद्धव से मतभेद नहीं, ये है ‘पॉलिटिकल ब्रेकअप’ की असली कहानी

बालासाहेब ठाकरे के बेटे और उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना से अलग होने का फैसला किया और फिर 2006 में अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई।

  • By आकाश मसने
Updated On: Apr 21, 2025 | 01:02 PM

बालासाहेब ठाकरे के साथ राज ठाकरे व उद्धव ठाकरे (सोर्स: सोशल मीडिया)

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नवभारत डेस्क: महाराष्ट्र की राजनीति में 20 साल बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के फिर से एक होने के कयास लगाए जा रहे हैं। पहले मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मतभेद भुलाने की बात कही और फिर इसके जवाब में शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी महाराष्ट्र के हितों का हवाला देते हुए छोटे-मोटे झगड़ों को पीछे छोड़ने के संकेत दिए। लेकिन सबके मन में एक सवाल ने जन्म ले लिया है, कि दो भाई ऐसा क्या हुआ था कि दोनों की राहें अलग हो गई थी। आइए इस आर्टिकल में इस सवाल का जबाव जानने की काेशिश करते हैं।

बालासाहेब ठाकरे के बेटे और उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना से अलग होने का फैसला किया और फिर 2006 में अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई।

तारीख थी 18 दिसंबर 2005 और जगह थी शिवाजी पार्क जिमखाना। राज ठाकरे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और शिवसेना से अलग होने का ऐलान किया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए राज ठाकरे ने कहा कि उन्होंने सम्मान मांगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ अपमान और बेइज्जती मिली।

दरअसल, शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी राज ठाकरे को माना जाता था क्योंकि उनकी छवि अपने चाचा बालासाहेब की तरह तेजतर्रार नेता की थी। साथ ही वे पार्टी में उद्धव से अधिक सक्रिय थे।

1995 में शुरू हुई अधिकारों की लड़ाई

शिवसेना से अलग होने का फैसला राज ने अचानक नहीं लिया, बल्कि इसके पीछे की वजह दोनों भाइयों के बीच लगातार बढ़ते मतभेद और अधिकारों की लड़ाई थी, जिसकी शुरुआत 1995 में हुई थी। दरअसल, राज ठाकरे शिवसेना में बालासाहेब के सबसे करीबी थे। उनमें बालासाहेब जैसे ही तेवर, खुलकर बोलने की वही हिम्मत और वो सारी खूबियां थीं जो राज ठाकरे को बालासाहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी बना सकती थीं। इधर उद्धव ठाकरे भी तब तक राजनीति में उतने सक्रिय नहीं थे।

बालासाहेब ठाकरे के साथ राज ठाकरे की बचपन की तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)

पार्टी में उद्धव का कद बढ़ने लगा

1995 से पार्टी में उद्धव का कद बढ़ने लगा। वे पार्टी का काम देखने लगे और पार्टी के फैसलों में बालासाहेब की मदद करने लगे। इसके बाद 1997 में हुए BMC चुनाव में राज ठाकरे की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए ज्यादातर टिकट उद्धव की मर्जी के मुताबिक बांटे गए।

बीएमसी चुनाव में शिवसेना के जीत ने पार्टी में उद्धव का बढ़ाया और इसके बाद लगातार उनका दबदबा मजबूत किया गया होता गया और राज ठाकरे किनारे लगने लगे। इससे दोनों भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा और मतभेद की खाई और गहरी होती चली गई।

राज ने रखा उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव

वर्ष 2002 में राज ठाकरे ने महाबलेश्वर में उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा। इस फैसले ने कई लोगों को चौंकाया। हालांकि, सभी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए।

इसके बाद राज को शिवसेना में अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा। आखिरकार राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना छोड़ दी और 2006 में अपनी अलग पार्टी मनसे बना ली। हालांकि, अपने गठन के इतने सालों बाद भी मनसे पूरे महाराष्ट्र पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई और पार्टी का जनाधार मुंबई-नासिक तक ही सीमित रह गया।

मनसे बनने के बाद कैसा रहा राज का सफर

नई पार्टी बनने के बाद जब 2009 में मनसे ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा तो 13 सीटों पर जीत हासिल की। इस चुनाव में मनसे ने ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को भुनाया। लेकिन 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में मनसे को केवल एक-एक सीट मिली। पिछले साल यानी 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में मनसे अपना खाता भी नहीं खोल पाई।

उद्धव ने भी खोई राजनीतिक जमीन

दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे को को 2022 में बड़ा झटका लगा जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह ने उनकी सरकार गिरा दी और शिवसेना में विभाजन हो गया। इससे भी बदतर यह हुआ कि उन्होंने अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी खो दिया। पिछले साल लोकसभा चुनाव में उद्धव ने शिवसेना (यूबीटी) नाम से अपनी नई पार्टी का नेतृत्व करते हुए जोरदार वापसी की और 9 सीटें जीतीं, जिससे 2024 के बाद राज्य के चुनावों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जगी। लेकिन विधानसभा चुनाव ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

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पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) ने 92 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 20 सीटें जीती थीं, जबकि उद्धव ठाकरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 सीटें जीती थीं। इससे उद्धव ठाकरे और बड़ा झटका लगा।

राज ठाकरे लड़ रहे राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई

मौजूदा दौर में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) राजनीतिक रूप से संघर्ष कर रही है। वहीं राज ठाकरे भी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। राज ठाकरे की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में वे अपने बेटे अमित ठाकरे को भी जीत नहीं दिला सके।

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Published On: Apr 21, 2025 | 01:02 PM

Topics:  

  • Maharashtra Navnirman Sena
  • Maharashtra Politics
  • Raj Thackeray
  • Shiv Sena
  • Udhhav Thackeray

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