
पुणे न्यूज (सौ. डिजाइन फोटो )
Pimpri News In Hindi: चुनावों के मौसम में इलाके के कई लोगों को अस्थायी रूप से रोजगार के अच्छे अवसर मिलते हैं। लेकिन आठ साल बाद तलेगांव के निवासियों को मिलने वाले ये अवसर इस बार सीमित हो गए हैं।
इसका कारण निर्विरोध चुनाव की राजनीति है। एक लाख का आंकड़ा पार कर चुके तलेगांव दाभाडे शहर के बाजारों में इस वजह से खरीद-विक्री का ग्राफ नीचे गिर गया है। व्यापारी, छोटे-बड़े व्यवसायी और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बेरोजगार इससे निराश दिख रहे हैं।
जीजामाता चौक पर हर दिन सुबह 7 से 9 बजे के बीच मजदूर अड्डा लगता है। कम से कम 300 से 400 कारीगर, मजदूर और महिलाएं वहां काम की तलाश में आती हैं, कई बार कुछ नाबालिग भी दिखते हैं। विशेष रूप से कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश और राज्य के बीड, अहमदनगर (अहिल्यानगर) क्षेत्रों के बेरोजगार श्रमिकों की संख्या बड़ी है।
उनसे बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि पिछले महीने से उन्हें ठेकेदारों से काम नहीं मिल रहा है। कुछ महिला श्रमिकों ने कहा कि वह चुनाव के समय जो भी काम मिलेगा वह करने को तैयार हैं, लेकिन जब काम ही नहीं है तो क्या करें।
एक ओर दिहाड़ी का काम पाने के लिए दिन के 300-400 रुपए कमाने की आस में मजदूर अड्डे पर श्रमिकों का जमावड़ा लग रहा है तो तो दूसरी ओर शहर में सोने-चांदी, शराब और मोबाइल की दुकानों पर ग्राहकों की भारी भीड़ नजर आ रही है। त्योहारी सीजन में इन दुकानों पर जैसी भीड़ होती थी, वह आज भी बरकरार है।
तलेगांव दाभाडे तालुका की आर्थिक राजधानी बन गया है। यहां लगभग 40 से अधिक राष्ट्रीय बैंक और बड़े बैंकों की शाखाएं है। 16 से अधिक क्रेडिट सोसायटियां पिछले 40 वर्षों से व्यवसाय वृद्धि के लिए ऋण उपलब्ध करा रही है, जिससे यहां कई छोटे-बड़े व्यवसायी प्रगति कर रहे है। जिस तरह शादी आदि कार्यक्रमों से उन्हें मौसमी इनकम होती है उसमें चुनाव के मौसम का एक बड़ा हिस्सा होता है, लेकिन निर्विरोध चुनाव के कारण वह अवसर छिन गया है।
– निलेश फलके, सामाजिक कार्यकर्ता और व्यवसायी
ये भी पढ़े :- Pune: नवले ब्रिज पर 30 किमी/घंटा नियम लागू, पहले दिन 150 चालान, ट्रैफिक जाम बढ़ा
चुनाव के मौसम प्रभावित हुए व्यवसायों में गुलाल, हार-फूल, झंडा, खादी के शर्ट, फेटे जैसी कई वस्तुओं की दुकानों में माल की खपत नहीं है। ढोल-ताशा पथकों को भी काम नहीं मिल रहा है। तलेगांव दाभाडे शहर में कम से कम 35 केटरर्स हैं, जिन्हें हर चुनाव में दावतों के ऑर्डर मिलते हैं। लेकिन इस बार कम संख्या में ऑर्डर मिल रहे हैं।






