ऑपरेशन सिंदूर: पुणे का कृत्रिम अंग केंद्र जांबाज सैनिकों को दे रहा नए जीवन की उम्मीद!
Pune News: भारतीय वायुसेना के पैरामेडिक कॉरपोरल वरुण कुमार ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उधमपुर एयरबेस के अग्रिम मोर्चे पर दुश्मन की मिसाइल गिरने पर अपना दाहिना हाथ गंवा दिया था। हालांकि कुछ ही सप्ताह में उन्होंने कृत्रिम अंग की मदद से अपनी दैनिक गतिविधियां शुरू कर दीं। उनके जीवन को अब आसान बनाने में पुणे स्थित कृत्रिम अंग केंद्र (एएलसी) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि कुमार के अलावा सशस्त्र बलों के दो और बहादुर जवान, भारतीय सेना के एक सूबेदार और वायुसेना के एक सार्जेंट, जो ऑपरेशन सिंदूर में संचालन तैयारियों के दौरान घायल हो गए थे, का भी एएलसी में उपचार किया गया।
सूबेदार ने अपने दोनों हाथ गंवा दिए, जबकि सार्जेंट ने एक पैर खो दिया था। वायुसेना प्रमुख अमर प्रीत सिंह ने पिछले महीने एएलसी का दौरा किया और कुमार से मुलाकात की, जिन्हें पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी ठिकानों पर भारत के हवाई हमलों में उनकी भूमिका के लिए वायुसेना पदक से सम्मानित किया गया था।
वायुसेना प्रमुख ने सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के संस्थान, एएलसी में कुमार और अन्य सशस्त्र बल कर्मियों से बातचीत की और उनके स्वास्थ्य में सुधार के बारे में जानकारी ली। एएलसी के कमांडेंट ब्रिगेडियर सीएन सतीश ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि कुमार को एक कृत्रिम हाथ लगाया गया है तथा उन्हें दैनिक गतिविधियों जैसे लिखने, खाने और कपड़े पहनने के लिए अपने बाएं हाथ का उपयोग करने का प्रशिक्षण भी दिया गया है। अपने हाथ गंवा चुके सूबेदार के बारे में ब्रिगेडियर सतीश ने कहा कि विशेष रूप से डिजाइन किए गए दस्ताने की मदद से, वह चम्मच, टूथब्रश, चाकू या कंघी जैसी चीजों का उपयोग कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘समय आने पर, उन्हें बायोनिक हाथ भी दिए जाएंगे और उनके इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। उपयुक्त फिटिंग और कार में कुछ बदलावों के साथ, एक दिव्यांग व्यक्ति गाड़ी चलाना भी सीख सकता है।” मिसाइल विस्फोट में अपना पैर गंवाने वाले सार्जेंट को कृत्रिम अंग लगाया गया है। एएलसी के कर्नल जी पी रेड्डी ने कहा, ‘‘आम तौर पर, अंग गंवाने वाले लोगों को सदमा लग जाता है। मरीज पर नकारात्मक भावना हावी होने से बचाने के लिए, हम सुनिश्चित करते हैं कि वे जल्द से जल्द कृत्रिम अंगों की मदद से चलना या रोजमर्रा के काम करना शुरू कर दें।”
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एएलसी पुणे की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 19 मई 1944 को दिव्यांग सैनिकों को कृत्रिम अंग प्रदान करने के लिए की गई थी। यह केंद्र सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों के दिव्यांग सैनिकों, साथ ही पूर्व सैनिकों, उनके परिवारों और नागरिकों को चिकित्सकीय सहायता प्रदान करता है। -एजेंसी इनपुट के साथ