नाशिक न्यूज (सौ. डिजाइन फोटो )
Nashik News In Hindi: नासिक में इस वर्ष गणेशोत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला था क्योंकि राज्य सरकार ने इसे राजकीय उत्सव का दर्जा दिया है। हालांकि, नासिक महानगर पालिका के अचानक बढ़े हुए शुल्क ने इस उत्साह को कम कर दिया है।जहां पहले गणेशोत्सव मंडल सिर्फ 101 रुपये का नाममात्र शुल्क देकर पंडाल लगाने की अनुमति ले सकते थे, वहीं अब उन्हें 850 रुपये देने पड़ रहे हैं।
प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जो मंडल यह बढ़ा हुआ शुल्क नहीं भरेंगे, उन्हें अनुमति नहीं मिलेगी। इसी कारण 600 से ज्यादा आवेदन जमा होने के बावजूद किसी भी मंडल को पंडाल लगाने की अनुमति नहीं मिल पाई है.
गणेश मंडलों ने इस रवैये को प्रशासन की हठधर्मिता बताते हुए नाराजगी जताई है। सार्वजनिक गणेशोत्सव निगम के अध्यक्ष समीर शेटे ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि शुल्क में बढ़ोतरी वापस नहीं ली गई, तो इस वर्ष भगवान गणेश की स्थापना तो होगी, लेकिन झांकियों और दृश्य प्रदर्शन को बंद रखा जाएगा। उनका कहना है कि राज्य उत्सव घोषित होने के बाद वह पहला साल है, ऐसे में मंडलों को रियायत की उम्मीद थी, लेकिन उल्टा उन पर नए शुल्क का बोझ डाला गया है।महानगर पालिका ने अनुमति प्रक्रिया को ऑनलाइन पोर्टल से जोड़ा है।
हर साल की तरह मंडलों ने समय पर आवेदन भी किया, मगर शुल्क विवाद के कारण परमिट अटके पड़े हैं। विज्ञापन शुल्क माफ करने को लेकर भी अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। मंडलों का कहना है कि पहले ही प्रायोजकों की कमी और घटती ग्राहकी से उत्सव पर दबाव है, ऊपर से भारी-भरकम शुल्क चोपना अनुचित है। शेटे ने सवाल उठाया कि आखिर अचानक आठ गुना शुल्क क्यों लगाया गया ? महावितरण की कार्यशैली ने भी मंडलों की परेशानियां बढ़ा यदी हैं। मोटर निरीक्षण शुल्क को बढ़ाकर 4000 रुपये कर दिया है।जमा सुरक्षा राशि से भी वापस नहीं की है।
गणेशोत्सव महामंडल के प्रतिनिधि ने कहा है कि 66 मंडलो की नाराजगी बढ़ती जा रही है। हमने चेतावनी दी है, मागे नहीं मानी गई, तो पंडालों में कोई झांकियां नहीं लग सकेंगी, ऐसा होने पर शहरवारिस्यों को हर साल की भव्य सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से वंचित रहना पड़ेगा।
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गणेशोत्सव महामंडल का कहना है कि मनपा, पुलिस और महावितरण से दो महीने पहले ही समस्याएं और मांगे सामने रख दी थीं ताकि अंतिम समय पर विवाद न खड़ा हो। बावजूद इसके, स्थितियां जस की तस बनी हुई है, न तो प्रशासन ने राहत दी और न ही बिजली कंपनी ने रुख नरम किया, यह उत्सव जनता के योगदान और श्रद्धा से चलता है, इसलिए सरकार और प्रशासन को सहयोगी रुख अपनाना चाहिए।