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मराठा हुए शांत अब OBC में उठेगा तूफान! कोर्ट जाने की तैयारी, महाराष्ट्र में फिर मचेगा बवाल

OBC Protest: हैदराबाद गजट के आधार पर मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करने पर ओबीसी संगठनों ने आपत्ति जताई। इसे 'घुसपैठ' बताया और न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी की।

  • By आकाश मसने
Updated On: Sep 04, 2025 | 07:28 AM

अनशन पर बैठे ओबीसी नेता (फोटो नवभारत)

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Maharashtra News: हैदराबाद गजट लागू करते हुए वहां की लाखों प्रविष्टियां तथा मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के कुनबी, कुनबी-मराठा तथा मराठा-कुनबी होने वाले और उनके रक्त संबंधियों को जाति वैधता प्रमाणपत्र मिलेगा। अर्थात वे ओबीसी में शामिल हो जाएंगे। यह एक प्रकार से एक जाति में दूसरी जाति की घुसपैठ है। राज्य सरकार को ऐसी घुसपैठ करने का अधिकार नहीं है। संवैधानिक दृष्टि से यह कानून के दायरे में नहीं आता। इसलिए इसके विरोध में न्यायालय में जाएंगे। यह इशारा ओबीसी संगठनों ने दिया है।

सरकार के जीआर से विदर्भ के ओबीसी में संदेह का तूफान खड़ा हो गया है और कई संगठनों के पदाधिकारी अब कानूनी सलाह ले रहे हैं। कुछ ने तो न्यायालय में जाने का मसौदा भी तैयार कर लिया है।

सरकार के दबाव में लिया गया निर्णय

राष्ट्रीय ओबीसी मुक्ति मोर्चा के मुख्य संयोजक नितिन चौधरी ने सरकार के जीआर पर विशेषज्ञों से सलाह ली। उनके अनुसार न्यायालय में जाने की तैयारी चल रही है। सरकार ने दबाव में लिया हुआ यह निर्णय है। सरकार एक जाति में दूसरी जाति को शामिल नहीं कर सकती। साथ ही उपसमिति द्वारा ऐसे निर्णय दिए नहीं जा सकते।

न्यायमूर्ति शिंदे समिति पिछले 2 वर्ष से मराठा आरक्षण का अध्ययन कर रही है। उन्हें अब तक समाधान नहीं मिला। उपसमिति को सिर्फ 5 दिनों में इस विवाद का उत्तर कैसे मिला, यह सवाल भी उठाया जा रहा है।

पितृसत्तात्मक वंशावली जरूरी

किसी को प्रमाणपत्र देते समय जाति की सत्यता पितृसत्तात्मक वंशावली से मानी जाती है। इस जीआर के अनुसार खेती करने वाला मराठा और उसकी प्रविष्टि, साथ ही उसने हलफनामे में रिश्तेदार का उल्लेख किया हो तो उसे ओबीसी का प्रमाणपत्र मिलेगा, ऐसा प्रावधान है लेकिन जाति प्रमाणपत्र ऐसे ही बांटे नहीं जाते। उसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया होती है। इस तरह सरसरी तौर पर जाति प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता। ऐसा विशेषज्ञों का कहना है।

उपसमिति को संवैधानिक दर्जा कैसे?

चौधरी ने कहा कि जीआर या निर्णय लेने का अधिकार सरकार यानी मंत्रिमंडल को होता है। उपसमिति संवैधानिक नहीं है। उन्होंने कैसे निर्णय लिया? चौधरी ने कहा कि इसलिए यह कानून के दायरे में नहीं आएगा। जब यह मुद्दा न्यायालय में उठेगा तब सरकार को इन सभी सवालों के उत्तर देने होंगे।

यह भी पढ़ें:- जीआर जारी सस्पेंस बरकरार…क्या मराठों को मिलेगा लाभ? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

लाभार्थी बोल नहीं सकते

कुछ ओबीसी नेता कह रहे हैं कि सरकार के निर्णय से ओबीसी को कोई नुकसान नहीं है लेकिन उनका अध्ययन अधूरा लगता है। उन्हें कुनबी के रूप में प्रमाणपत्र मिलना यानी ओबीसी में मान्यता पाना है। यह ओबीसी में शामिल किए जाने की प्रक्रिया है। यानी ओबीसी के आरक्षण में अब तक जो हिस्सा उन्हें नहीं मिला था, वह अब देना होगा।

आज मंत्री छगन भुजबल विरोध कर रहे हैं। वे व्यवस्था के लाभार्थी हैं। वे मंत्री हैं। उसी मंत्रिमंडल की उपसमिति ने जीआर निकालने का निर्णय लिया। तब उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया? यह सवाल भी चौधरी ने उठाया। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि इस निर्णय के खिलाफ न्यायालय में न जाने वाले सभी लोग व्यवस्था के लाभार्थी होंगे।

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Published On: Sep 04, 2025 | 07:28 AM

Topics:  

  • Maharashtra News
  • Maratha Reservation
  • Nagpur
  • Nagpur News

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