राज्य मंत्री आशिष जायसवाल और सांसद श्यामकुमार बर्वे (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Parshivani News: आजादी के 79 साल के बाद भी पारशिवनी तहसील के अंर्तगत आने वाली 8 ग्राम पंचायतों के पास आज भी श्मशान घाट नहीं हैं, जो कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधिओं के द्वारा तहसील में किए गए विकास की कहानी स्वत: बयां कर रही हैं। देश से विदेशी सत्ता का समापन होने के बाद 1951-52 में पहली लोकसभा चुनाव होने के बाद 1965 में रामटेक विधानसभा सकार हुई।
कुछ समय के बाद पारशिवनी तहसील का समावेश रामटेक विधानसभा में किया गया, क्योंकि इसके पूर्व पारशिवनी तहसील का समावेश सावनेर विधानसभा में हुआ करता था। जब पारशिवनी-सावनेर विधानसभा में थी, तब और आज पारशिवनी रामटेक विधानसभा में समाविष्ट हैं। दोनों जनप्रतिनिधियों के कार्यकाल में परिवर्तन तो हुआ हैं, जो कि भौतिक विकास की ओर इशारा करता है।
आजादी मिलने के 79 साल के बाद पारशिवनी तहसील की 8 ग्राम पंचायत में श्मशान घाट नहीं हैं, सुनने में अचंभा लगता हैं, परंतु वस्तविकता यही है। इन 8 ग्राम पंचायतों में सालई मोकासा, टेकाडी कान्हादेवी, माहुली, सावडी, पालासावली, नवेंगांव खैरी सहित ग्राम पंचायत चारगांव का समावेश हैं। इन 8 ग्राम पंचायतों के द्वारा श्मशान घाट को लेकर कई बार प्रस्ताव भी दिया गया, जिसमें सालई मोकासा के द्वारा वन विभाग की भूमि पर श्मशान बनाने का प्रस्ताव दिया हैं।
इस क्रम में टेकाडी कान्हादेवी के द्वारा श्मशान घाट का जो प्रस्ताव दिया गया है, वह भूमि झुड़पी जंगल में समाविष्ट है। ग्रापं सुवरधरा के द्वारा सालेघाट, शिलादेवी, मकरधोकड़ा गांव में श्मशान घाट की भूमि नहीं होने की जानकारी सामने आई हैं। इन तीनों गांवों ने जिस भूमि में श्मशान घाट बनाने का प्रस्ताव दिया है, वह भूमि भी क्रमश:तालाब, संरक्षित वन एवं सरकारी वन की आरक्षित जगह बताई जा रही है।
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ग्राम पंचायत माहुली के अंर्तगत आने वाले कालापाठा गांव में भी श्मशान के लिए भूमि नहीं है। ग्राम पंचायत सावडी के अंर्तगत चिंचोली एवं महादुला गांव में श्मशान के लिए भूमि नहीं है। जबकि ग्रापं पंचायत पालासावली के कालभैरव गांव में एवं ग्रापं नवेंगांव खैरी सहित ग्राम पंचायत चारगांव के भिवगढ़ में आज तक श्मशान घाट के लिए भूमि नहीं मिल पाई हैं।
ग्राम पंचायतों के अंर्तगत जिन गांवों में श्मशान घाट नहीं हैं, ऐसे गांव को श्मशान के लिए भूमि की आवश्यकता को देखते हुए विविध विभागों को प्रस्ताव भेजे गए, परंतु आज भी श्मशान घाट के लिए भूमि आरक्षित करने के प्रस्ताव विभागों के टेबल पर धूल खा रही हैं।
सालई मोकासा के श्मशान भूमि का प्रस्ताव वनपरिक्षेत्र अधिकारी पारशिवनी, टेकाडी कान्हादेवी का प्रस्ताव वनपरिक्षेत्र अधिकारी नागलवाडी, सालेघाट गांव का प्रस्ताव तहसीलदार पारशिवनी, शिलादेवी, मकरधोकडा का प्रस्ताव वनविभाग पारशिवनी के टेबल में पड़े धूल खा रहा हैं। जबकि कालापाठा, चिंचोली का प्रस्ताव तहसीलदार पारशिवनी तथा कालभैरव गांव का प्रस्ताव वनविभाग पारशिवनी एवं नवेंगांव खैरी तथा भिवगढ़ का प्रस्ताव तहसीलदार पारशिवनी के टेबल पर पड़ा धूल खा रहा हैं।
वन विभाग एवं राजस्व विभाग के टेबल पर धूल खाते प्रस्ताव को लेकर क्या राज्यमंत्री एड. आशिष जायसवाल तथा सांसद श्यामकुमार बर्वे आने वाले समय में कोई सकारात्मक कदम उठाएंगे, या फिर यह श्मशान घाट को लेकर यह प्रस्ताव यूं ही टेबल-टेबल खेलते रहेंगे?