मेडिकल (फाइल फोटो)
Nagpur Medical College: नागपुर शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि मध्य भारत के मरीज इलाज के लिए यहां आ रहे हैं। अकेले मध्य प्रदेश से करीब 60 फीसदी मरीज आते हैं। इस तुलना में सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। वहीं मैनपॉवर की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है।
पिछले दिनों वर्ग के पदों पर नियुक्ति हुई लेकिन मौजूदा हालात में यह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान है। वर्ग 1 से लेकर वर्ग-4 तक हर जगह खाली पदों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान में मेडिकल में प्रतिदिन ओपीडी 2500-3000 तक पहुंच गई है। वहीं बेड की संख्या 2,000 का आंकड़ा पार चुकी है जबकि पदों की मान्यता 1,401 बेड के अनुसार ही है। पिछले वर्षों में बेड और विभाग बढ़े लेकिन नये पद सृजित नहीं हुए।
यही वजह है कि डॉक्टरों सहित वर्ग-4 तक के लिए ठेकेदारी पद्धति पर नियुक्ति की नौबत आ रही है। एक ओर जहां सरकार राज्य में विविध विभागों में मेगा भर्ती का दावा कर रही है वहीं यहां पर स्थिति कुछ विपरीत बनी हुई है। मेडिकल में वर्ग 1 व 2 के कुल 52 पद मंजूर हैं। इनमें से 32 पद भरे हुये हैं जबकि 20 पद अब भी खाली हैं। वैद्यकीय अधीक्षक, उप अधीक्षक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर प्रभारी अधिकारी बैठाये गये हैं। बायोकेमिस्ट, बायोकेमिकल इंजीनियर के भी पद खाली हैं।
पद नाम | मंजूरी | खाली |
---|---|---|
नर्से | 1,162 | 128 |
वर्ग 4 | 828 | 168 |
वर्ग 1 | 8 | 7 |
वर्ग 2 | 44 | 13 |
मेडिकल में वर्ग-3 के कुल 206 पद मंजूर हैं। इनमें 114 पद भरे हैं। वहीं 92 पद खाली हैं। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट अभय कोलारकर द्वारा मांगी गई जानकारी से हुआ। कनिष्ठ लिपिक के 40 पदों में केवल 10 पद भरे हैं जबकि 30 पद खाली है। एंबुलेंस चालकों के 8 पदों में केवल 4 ही भरे हुये हैं। ब्रेसमेकर एक भी नहीं है।
2,000 से ज्यादा बेड
2,500 से ज्यादा ओपीडी
50 प्रश पद वर्ग तीन के खाली
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स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अस्पताल में नर्सों की पर्याप्त संख्या आवश्यक है लेकिन नर्सों के मामले में भी मेडिकल पीछे है। नर्सों के कुल 1,162 पद मंजूर हैं। इनमें 1,034 पद भरे हैं। 128 पद खाली हैं। विभागीय अधिसेविका के सर्वाधिक 20 पदों में से 13 पद खाली हैं। अधिपरिचारिका के 984 पदों में से 93 खाली हैं। ट्रामा केयर यूनिट में स्थिति ठीक-ठाक है। यहां कुल 84 पदों में से 79 पद भरे हुये हैं।
मेडिकल में इलाज सहित विविध तरह के टेस्ट के लिए इंतजार करना पड़ता है। इसकी मुख्य वजह मैनपावर की कमी है। जिस तरह प्रशासकीय पद खाली हैं उसी तरह शैक्षणिक पद यानी प्राध्यापकों के भी पद खाली हैं। करीब 60 फीसदी पद अब भी खाली हैं। नेशनल मेडिकल काउंसिल के निरीक्षण के दौरान ‘इसकी टोपी उसके सिर’ यानी उधारी के प्राध्यापक से काम चलाया जाता है। जब 75 वर्ष पुराने मेडिकल की यह हालत है तो फिर नये मेडिकल कॉलेजों में मैनपावर की क्या स्थिति होगी, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।