नागपुर हाईकोर्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
Nagpur News: मतदाता सूची के लिए गट/गण के निर्माण में कथित रूप से हुई अनियमितताओं को लेकर दिलीप जाधव ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने जहां अंतिम प्रक्रिया याचिका के अधीन होने का आदेश दिया वहीं राज्य चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने का भी आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता घारे ने अदालत के समक्ष प्रथमदृष्टया कुछ अनियमितताएं प्रस्तुत कीं। उन्होंने विशेष रूप से ग्राम मसला (बीके) का उदाहरण दिया जिसे पहले पंगारी नवघरे गट में शामिल किया गया था लेकिन अब इसे ब्राह्मणवाड़ा गट में शामिल कर दिया गया है जो भौगोलिक दृष्टि से असुविधाजनक लगता है। इसी तरह के अन्य गांवों के उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए।
अधिवक्ता घारे ने तर्क दिया कि गट/गण के निर्माण के लिए निर्धारित दिशानिर्देशों संख्या 3.5.2, 3.5.3, 3.5.4, 3.5.6, 3.7.2, 3.7.5, 8.1 और 8.2 का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है। अदालत को यह भी बताया गया कि गट/गण की तैयारी पर उठाई गई आपत्तियों का सही परिप्रेक्ष्य में निर्णय नहीं लिया गया। याचिका में बताया गया कि आपत्तियों पर लिए गए निर्णय की प्रति बार-बार अनुरोध करने के बावजूद 12 अगस्त 2025 को देर शाम कार्यालय समय के बाद उपलब्ध कराई गई, जबकि निर्णय कथित तौर पर 11 अगस्त 2025 को लिया गया था। इसके बाद 15, 16 और 17 अगस्त को छुट्टियां थीं। याचिकाकर्ताओं ने आशंका जताई है कि यदि गट/गण की यह तैयारी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 18 अगस्त 2025 को राज्य चुनाव आयोग को भेज दी जाती है तो इससे भारी अव्यवस्था फैल सकती है।
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यदि इसे स्वीकार किया जाता है तो कई मतदाताओं को मतदान करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी जिससे परोक्ष रूप से उनके मतदान के अधिकार पर असर पड़ेगा जैसा कि कानून में प्रदान किया गया है। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गट/गण को अंतिम रूप देने की कोई भी प्रक्रिया इस याचिका के अंतिम परिणाम के अधीन होगी। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने प्रतिवादियों से 2 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने और उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। यदि प्रतिवादियों द्वारा जवाब दाखिल नहीं किया जाता है तो न्यायालय ने अंतरिम राहत देने पर विचार करने के संकेत भी दिए।
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इस बीच, हस्तक्षेप करने वाले मतदाताओं के एक समूह की ओर से याचिकाकर्ताओं का समर्थन करते हुए मध्यस्थता अर्जी दायर की गई जिसमें अदालत से हस्तक्षेप की अनुमति मांगी गई। उनका दावा है कि यदि वर्तमान गट/गण को स्वीकार किया जाता है तो उन्हें नुकसान होगा जिसके बाद कोर्ट ने उनके हस्तक्षेप आवेदन (सिविल एप्लीकेशन (सीएडब्ल्यू) संख्या 1936/2025) को स्वीकार कर लिया।