AI Generated Fake Videos Matter
Fake News Social Media: सोशल मीडिया के इस दौर में झूठ और सच का फर्क मिटता जा रहा है। आए दिन कोई न कोई फेक या एडिटेड वीडियो वायरल होकर सरकारी विभागों की प्रतिष्ठा और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर देता है। वन विभाग, रेलवे, पुलिस जैसे विभाग इन वायरल वीडियो की सच्चाई बताने और अफवाहों को शांत करने में ज्यादा वक्त लगा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि अब अधिकारी कहने लगे हैं-“हम काम करें या रोज स्पष्टीकरण दें।”
हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें एक व्यक्ति के शेर को बड़ी बिल्ली समझकर दुलारने और शराब पिलाने की कोशिश का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। वीडियो में व्यक्ति शेर के पास जाकर बोतल दिखाता नजर आया। वीडियो इतनी तेजी से वायरल हो गया कि खबरों में जगह मिल गई। वीडियो महाराष्ट्र वन विभाग के पास पहुंचा तो विभाग ने तत्काल जांच शुरू की।
जांच में खुलासा हुआ कि यह वीडियो असल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से बनाया गया है। न तो ऐसी कोई घटना हुई और न ही संबंधित इलाकों में कोई शेर पाया गया। विभाग ने वीडियो को पोस्ट करने वाले सोशल मीडिया अकाउंट के खिलाफ नोटिस जारी किया और प्लेटफॉर्म से वीडियो हटवाया।
मामला शांत भी नहीं हुआ था कि एक और वीडियो ने सनसनी फैला दी। इस बार वीडियो में दिखाया गया कि एक व्यक्ति अपने घर के बाहर बैठा है और अचानक बाघ आकर उस पर झपटता है। कथित तौर यह घटना चंद्रपुर जिले की बताई गई। वीडियो इतना वास्तविक लग रहा था कि लोग दहशत में आ गए।
ग्रामीण इलाकों में अफवाह फैल गई कि मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ गया है लेकिन पता चला कि यह वीडियो भी पूरी तरह फेक है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ इस तरह घर के बाहर बैठे व्यक्ति पर इस कोण से हमला नहीं करता। वीडियो को फ्रेम-बाय-फ्रेम जांचने पर एआई एडिटिंग और मर्जिंग के स्पष्ट संकेत मिलते हैं।
वन विभाग के अलावा रेलवे, पुलिस और अन्य कई सरकारी विभाग भी ऐसी फर्जी खबरों और वीडियो से जूझ रहे हैं। इसी प्रकार कुछ वर्ष पहले सोशल मीडिया पर एक ट्रेन एक्सीडेंट का वीडियो वारयल हुआ था। कहा गया कि नागपुर-आमला पैसेंजर पटरी से उतर गई। हकीकत में ऐसा कुछ नहीं हुआ था लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से वायरल हुए वीडियो ने रेलवे से लेकर आम जनता को भी परेशान कर दिया था। हालांकि देर शाम तक सच्चाई भी सामने आ गई।
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मीडिया विशेषज्ञों के अनुसार अब फेक वीडियो बनाने के लिए एडिटिंग सॉफ्टवेयर और एआई टूल्स इतने उन्नत हो चुके हैं कि सामान्य दर्शक के लिए असली और नकली वीडियो में फर्क करना कठिन हो गया है। इस वजह से सरकारी विभागों की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है और जनता में गलतफहमी फैलती है। आईटी विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे वीडियो को वायरल करने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी जिम्मेदारी लेनी होगी कि वे एआई जनरेटेड और भ्रामक कंटेंट को तुरंत चिन्हित करें। सरकारी अधिकारी कहते हैं कि हम हर वायरल वीडियो की जांच में संसाधन और समय खर्च कर रहे हैं। ये प्रयास असली संरक्षण और निगरानी कार्यों से हमारा ध्यान भटकाते हैं। इससे साफ है कि सोशल मीडिया पर नजर आया सबकुछ सही नहीं होता।