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सरकार के हवाले हो जाएंगे किसान! विदेशी कपास का भाव होगा कम, केंद्र ने आयात शुल्क में दी छूट

Maharashtra News: केंद्र सरकार की कपास आयात शुल्क में छूट से विदेशी कपास सस्ता होगा, जिससे भारतीय किसानों को नुकसान होगा। निजी कंपनियां विदेशी कपास की ओर झुकेंगी।

  • By आकाश मसने
Updated On: Aug 31, 2025 | 06:58 AM

कपास (सोर्स: सोशल मीडिया)

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Cotton Import Duty Cut: केंद्र सरकार ने कपास के आयात पर शुल्क में छूट दे दी है। यह छूट विदर्भ सहित पूरे देश के कपास किसानों पर भारी पड़ने जा रही है। विदेशी कपास भारत में 6500-7000 रुपये क्विंटल बिकेगा जबकि देश में उत्पादित कपास 8000 रुपये क्विंटल का पड़ेगा। ऐसे में निजी कंपनियां सीधे-सीधे विदेशी कपास की खरीदी करेंगी। भारतीय कपास से उनका मोह भंग हो जाएगा।

विदेशी कपास खरीद कर मिल मालिक प्रति क्विंटल 1000 रुपये की बचत कर सकते हैं। जिनिंग और मिल मालिकों को जहां सस्ता कपास मिलेगा वहीं गुणवत्ता में भी बेहतर होगी। ऐसे में भारतीय किसानों को अपना कपास बेचने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करने को मजबूर होना पड़ेगा।

निजी खरीदार उन्हें मिलने वाला नहीं है। सरकार ही कपास खरीद सकेगी। मिल और जिनिंग वालों के लिए भले ही यह सकारात्मक हो सकता है लेकिन भू स्वामी माल बेचने को तरस जाएंगे। उन्हें अपने आपको पूरी तरह से सरकार के ‘हवाले’ कर देना पड़ेगा।

8110 रुपये है कपास की एमएसपी

क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि खुले बाजार में भारतीय किसानों के लिए माल बेचना असंभव हो जाएगा। उन्हें अपना माल महाराष्ट्र कॉटन फेडरेशन या फिर सीसीआई को ही बेचना होगा। पिछले वर्ष सरकार ने कपास के लिए 7500 रुपये एमएसपी घोषित की थी जबकि आगामी सीजन 2025-26 के लिए 8110 रुपये का एमएसपी घोषित किया गया है।

कोई भी निजी खरीदार 7000 रुपये क्विंटल छोड़कर 7500-8000 रुपये का भाव देने नहीं जा रहा है। ऐसे में अगर सरकार खुद खरीदी करती है तो किसान बच सकते हैं लेकिन ऐसा होना मुश्किल दिखाई पड़ रहा है क्योंकि सरकार के पास पिछले वर्ष का भी भारी भरकम भंडार भी पड़ा हुआ है।

विदर्भ में हैं 15 लाख किसान

कॉटन फेडरेशन के आंकड़ों के अनुसार विदर्भ में 15 लाख किसान कपास पर निर्भर हैं। ये लगभग 16 लाख हेक्टेयर में कपास उगाते हैं। राज्य की बात करें तो राज्य में 39 लाख हेक्टेयर में कपास का उत्पादन होता है और लगभग 39 लाख किसान सीधे तौर पर जुड़े हैं। इसका मतलब यह है कि इतने किसानों के जीवन पर सीधा असर पड़ने जा रहा है।

कॉटन फेडरेशन मार्केट से बाहर

आंकड़ों को देखें तो महाराष्ट्र कॉटन फेडरेशन पिक्चर में है ही नहीं। पिछले कई वर्षों से किसान फेडरेशन के खरीदी केंद्र में नहीं जाते क्योंकि उन्हें निजी खरीदारों से अधिक मूल्य मिल जाता था। पिछले वर्ष कॉटन फेडरेशन ने तो एक भी केंद्र नहीं खोला था। अगले सीजन के लिए सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। इसलिए किसान भी पसोपेश में हैं कि उनका भविष्य कैसा होगा।

2004-05 के दौरान फेडरेशन के भरोसे किसान रहते थे। फेडरेशन भी कुल उत्पादन का लगभग 90-95 फीसदी कपास खरीदी करता था लेकिन बाद में सरकार ने निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया और फेडरेशन को हाशिए पर धकेल दिया।

यह भी पढ़ें:- नागपुर मनपा दफ्तर से फाइलों की चोरी! दो ठेकेदार हुए ब्लैकलिस्ट, मचा हड़कंप

परिणाम यह हुआ कि निजी क्षेत्र 90-95 फीसदी कपास खरीदी करने लगे और फेडरेशन ‘शून्य’ पर आकर खड़ा हो गया। ड्यूटी कट के बाद पुन: एक बार परिदृश्य में 360 डिग्री बदलाव होने की संभावना जताई जाने लगी है।

सीसीआई पर पूरा बोझ

जानकार बताते हैं कि महाराष्ट्र में कॉटन फेडरेशन के हटने के बाद सीसीआई के पास पूरी जिम्मेदारी है। सीआईआई केंद्रों के जरिए खरीदी कर रहा है परंतु इस बार उसके पास कड़ी चुनौती है क्योंकि पिछले वर्ष का माल भी सीसीआई नहीं बेच पाया है। 25 लाख गांठ उसके पास पड़ा है। अगले सीजन में उसे लगभग पूरा का पूरा माल खरीदने को तैयार होना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो देश में बड़ी समस्या उत्पन्न होगी।

चुनौती के बीच 65 लाख गांठ का उत्पादन

इस वर्ष अच्छी बारिश और आयात शुल्क कटौती के बीच कपास का सीजन अच्छा रहने का अनुमान है। उम्मीद की जा रही है कि विदर्भ में 65-70 लाख गांठ उत्पादन होगा। ऐसे में इसकी खपत कहां और कैसे होगी, यह बड़ा प्रश्न है। किसान चिंतिंत हैं। वे भविष्य पर नजरें टिकाए खड़े हैं। जानकारों का कहना है कि दिसंबर तक मिली छूट के दौर में बड़ी कंपनियां सस्ती विदेशी कॉटन की खरीदी करेंगी। ऐसे में ‘देसी माल’ के लिए खरीदान कौन और कहां मिलेगा, इससे किसानों के माथे पर चिंता की लकीर दिखाई देने लगी है।

Cotton import duty cut indian farmers impact

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Published On: Aug 31, 2025 | 06:58 AM

Topics:  

  • Central Government
  • Maharashtra News
  • Nagpur News

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