मनोज जरांगे, सीएम फडणवीस (pic credit; social media)
Maratha Reservation: मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन का चेहरा बन चुके मनोज जरांगे पाटिल एक बार फिर चर्चा में हैं। अनशन तोड़ने के कुछ ही दिनों बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बयान ने पूरे आंदोलन पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।
दरअसल, जरांगे पाटिल ने मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिन तक भूख हड़ताल की थी। उनकी मुख्य मांग थी कि मराठवाड़ा के सभी मराठाओं को कुनबी जाति में शामिल किया जाए ताकि उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल सके। आंदोलन ने जोर पकड़ा तो सरकार ने बातचीत कर उनकी मांग मानने का आश्वासन दिया और जरांगे ने अपना अनशन खत्म कर दिया।
लेकिन आंदोलन खत्म होने के हफ्ते दिन भी नहीं बीते थे कि मुख्यमंत्री फडणवीस ने बड़ा ऐलान कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि सभी मराठाओं को कुनबी में शामिल नहीं किया जा सकता। केवल वही लोग आरक्षण का लाभ ले पाएंगे जिनका नाम हैदराबाद गजट के रिकॉर्ड्स में मौजूद होगा। अंग्रेजों के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए सरकार सिर्फ हैदराबाद गजट को ही आधार मानेगी।
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फडणवीस ने कहा, “जो लोग रिकॉर्ड में शामिल हैं, उन्हें ही प्रमाण पत्र मिलेगा। हर किसी को कुणबी प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा। हमने आसान प्रक्रिया बनाई है ताकि योग्य मराठा समाज वंचित न रहे। लेकिन ओबीसी समाज के अधिकारों पर कोई आंच नहीं आने दी जाएगी। जबतक हमारी सरकार है, ओबीसी का अहित नहीं होगा।”
यह फैसला ओबीसी समाज के विरोध के बाद लिया गया है। ओबीसी संगठनों का कहना था कि मराठाओं को कुनबी में शामिल करने से उनका आरक्षण प्रभावित होगा। सरकार ने इस विरोध को देखते हुए सीमित दायरे में आरक्षण देने का निर्णय लिया।
लेकिन इस ऐलान से मराठा समाज और खासकर मनोज जरांगे पाटिल को बड़ा झटका लगा है। उनकी मांग थी कि अगर किसी मराठा को कुनबी में शामिल कर आरक्षण दिया जा रहा है तो उसके रिश्तेदारों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए। अब सरकार के ताजा फैसले से हजारों मराठा इस दायरे से बाहर रह जाएंगे।
यही वजह है कि राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि जरांगे पाटिल एक बार फिर अनशन की तैयारी कर सकते हैं। सरकार के लिए यह स्थिति बड़ी चुनौती बन सकती है क्योंकि जरांगे के एक आह्वान पर लाखों मराठा सड़कों पर उतर आते हैं। सवाल यह है कि क्या यह आधा-अधूरा फैसला आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति को फिर से गर्मा देगा?