गोंदिया का अस्पताल (फोटो नवभारत)
Gondia Health Services: गोंदिया जिला परिषद स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी 8 तहसीलों में कुल 40 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चलाए जाते हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को दवा उपलब्ध कराई जाती है। वर्तमान में वायरल बुखार का माहौल है और जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रतिदिन 100 से 150 मरीजों की जांच की जा रही है।
40 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अंतर्गत ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में कुल 260 प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों में चिकित्सा अधिकारियों सहित सैकड़ों स्वास्थ्य सेविकाओं के पद रिक्त है। जिससे स्वास्थ्य सेवा पर असर पड़ रहा है।
गोंदिया जिला नक्सलग्रस्त व आदिवासी दुर्गम क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यहां स्थित नागरिक खेती व रोजगार पर निर्भर है। आदिवासी नागरिक के लिए निजी अस्पतालों में इलाज करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में इस इलाके की स्वास्थ्य सेवाएं सरकारी अस्पताल पर निर्भर है। लेकिन स्वास्थ्य केंद्र में दूर-दूर तक सुविधा व व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से डॉक्टर व कर्मचारियों की कमी के कारण ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा गई है। जिले में आज भी आदिवासी क्षेत्र स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे है।
गोंदिया के बीजीडब्ल्यु महिला अस्पताल में हर साल 7,000 से ज्यादा गर्भवती महिलाएं बच्चों को जन्म देती हैं। गर्भवती महिलाओं के प्रसव का 90 प्रतिशत बोझ अकेले बीजीडब्ल्यु महिला अस्पताल पर है। महिला अस्पताल में अन्य महिलाओं और बच्चों का भी इलाज होता है। यह अस्पताल गरीब गर्भवती महिलाओं के लिए एक वरदान है।
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विदर्भवादी नेता छैलबिहारी अग्रवाल ने कहा कि इस दौर में भी अनेक सरकारी अस्पतालों में कर्मचारियों की भारी कमी है। इस वजह से रोगियों को निजी डॉक्टरों से परीक्षण कराने पड़ते हैं। कई बार सरकारी सेवा में कार्यरत डाक्टर अनदेखी करते हैं, तो कई बार सरकारी डाक्टर संसाधनों के अभाव में भी बेहतर काम नहीं कर पाते हैं।
गोंदिया निवासी आदेश शर्मा ने कहना है कि जिले में आबादी की जरूरत के हिसाब से स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय स्थिति में हैं। इस दौर में जब गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए अस्पतालों में स्ट्रेचर जैसी मूलभूत सुविधाएं न मिल पाएं, तो स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठना लाजमी है।
वीएसएस ग्रुप अध्यक्ष धरम खटवानी ने कहा कि इस प्रगतिशील दौर में भी ऐसी अनेक मामले प्रकाश में आए हैं कि अस्पताल की ओर से गरीब मरीज के शव को घर पहुंचाने के लिए एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं कराई जाती। अनेक डॉक्टर गांवों की तरफ रुख नहीं करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का खमियाजा ज्यादातर बच्चों, महिलाओं और बूढ़े लोगों को उठाना पड़ रहा है। महिलाओं को भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।