मुंबई: कहावत है, प्रेम और इश्क में सब जायज होता है। यही बात राजनीति (Politics) में भी लागू होती है। महाराष्ट्र की सत्ता को लेकर बुधवार को आए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले ने कई राजनीतिक भविष्य वक्ताओं के जबान पर ताले लगा दिए हैं। विशेषकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Chief Minister Eknath Shinde) के राजनीतिक भविष्य को लेकर लगाए जा गए अनेक कयास पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए विराम ही लगा दिया कि शिंदे सरकार को हटाया नहीं सकता। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री शिंदे जब अचानक सतारा में अपने पैतृक गांव के कार्यक्रम में शामिल होने गए तब चर्चा और तेज हो गई कि अब उनकी कुर्सी जाने वाली है।
यह वह समय था जब अजित पवार के एनसीपी से बगावत कर बीजेपी में शामिल होने और उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की हवा तेजी से चल रही थी। कहा जा रहा था कि मुख्यमंत्री शिंदे नाराज होकर अपने गांव चले गए हैं। हालांकि उस समय भी गांव के कई कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ शिंदे मंत्रालय की जरुरी फाइलें निपटा रहे थे। 24 घंटे जनता के बीच रहकर सिर्फ काम करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक बार फिर लंबी रेस का घोड़ा साबित हुए हैं।
वैसे देखा जाय तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का अब तक का सफ़र साहस और संघर्ष के साथ भाग्य से जुड़ा हुआ है। 10 माह पहले दो तिहाई से अधिक विधायकों को तोड़ कर अपनी ही पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे को सीएम पद से हटने के लिए मजबूर करने वाले एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति के नायक बन कर उभरे। बीजेपी के साथ मिल कर शिंदे ने राज्य में सत्ता की बागडोर संभाली और इतना ही नहीं, बल्कि बहुत कम समय में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का विश्वास भी हासिल कर लिया। हालांकि बीजेपी संगठन को शिंदे पूरी तरह रास नहीं आते, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद फडणवीस के साथ गजब का समन्वय बनाए रखा है। राजनीतिक पंडित उन्हें अल्पकालीन सीएम के रूप में देख रहे थे, परंतु शिंदे अब मुख्यमंत्री के रूप में और मजबूत होकर उभरे हैं।अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए शिंदे की अहमियत बढ़ने वाली है।
कट्टर शिवसैनिक से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक सफ़र तय करने वाले एकनाथ शिंदे का सामाजिक राजनीतिक सफ़र चुनौतीपूर्ण रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र में सतारा जिले में कोयना नदी के किनारे एक पिछड़े गांव के साधारण मराठा परिवार में जन्मे एकनाथ शिंदे के पिता संभाजी शिंदे काम धंधे की तलाश में ठाणे आए। शिंदे की स्कूली शिक्षा भी ठाणे में हुई। परिवार का बड़ा लड़का होने के कारण उन पर भरण पोषण का दबाव रहा और छोटी-मोटी नौकररियों के साथ ऑटोरिक्शा और टेम्पो चलाने का भी काम किया। शुरू से शांत सयंमी परंतु संघर्षरत युवक एकनाथ शिंदे पर शिवसेना के तत्कालीन जिला प्रमुख रहे आनंद दिघे की नजर पड़ी और उनकी राजनीति में इंट्री हो गई। शिंदे कई बार कहते हैं कि दिघे साहब हमेशा मुझे मुश्किल काम देते थे और मैं उन्हें पूरा करने के लिए इसे एक चुनौती के रूप में लेता था। उनके इस भरोसे ने मुझे आज तक किसी भी काम में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की हिम्मत दी है। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे के विचारों से प्रेरित एकनाथ शिंदे 1997 में पहली बार टीएमसी में नगरसेवक बने और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार चार बार विधायक शिवसेना के जिला प्रमुख से लेकर बने, महाराष्ट्र विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने। देवेंद्र सरकार में सार्वजनिक निर्माण के मंत्री औऱ उद्धव सरकार में महत्वपूर्ण नगरविकास मंत्री की जिम्मेदारी संभाली।
राजनीति में नियति का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मुख्यमंत्री शिंदे के राजनीतिक उत्थान में नियति की निश्चित भूमिका रही है। एक समय तो ऐसा आया था कि परिवार में भयंकर त्रासदी की वजह से राजनीति हो छोड़ने का मन बना लिया था। एक दुर्घटना में उन्होंने अपने दो बच्चे खो दिए। उस समय उनके पुत्र और मौजूदा सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे बहुत छोटे थे। आनंद दिघे ने उन्हें दिलासा दिया औऱ समाज के लिए समर्पित होने की प्रेरणा दी। शिंदे स्वयं कहते हैं मैंने नहीं सोचा था कि एक दिन राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा का मौका मिलेगा। उनके साहस ने उनकी नियति और भाग्य को बदलने का काम किया है। मुख्यमंत्री शिंदे को नजदीक से जानने वाले सहयोगी भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। कोरोनाकाल में स्वयं पीपीई किट पहनकर मरीजों के साथ साथ डॉक्टरों का हौसला बढ़ाने शिंदे स्वयं वार्ड में पहुंच जाया करते थे। बाढ़ हो, सूखा हो या कोई भी आपदा एकनाथ शिंदे प्रभावितों के साथ हमेशा मैदान में उतरते रहे हैं। अब बीजेपी भी उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव के मैदान में राज्य के अगुआ के रूप में उतारेगी क्योंकि 48 लोकसभा सीटों के साथ, महाराष्ट्र बीजेपी के लिए बहुत मायने रखता है और इसमें कोई संदेह नहीं कि अब सीएम शिंदे उस चुनावी अखाड़े के प्रमुख पहलवान के रूप में अभी से ही स्थापित हो चुके हैं।