प्रतीकात्मक तस्वीर
धारणी: मेलघाट के काटकुंभ व चुरणी परिसर के अतिदुर्गम क्षेत्रों के अनेक गांवों में बिजली की समस्या से लोग त्रस्त है। बोदु, बारूगव्हाण, राहू, बिबा, हतरू, रायपुर, हिल्डा, ऐकताई, भांडुम जैसे 30 गांव अंधेरे में डूबे है। एक ओर हम स्वाधिनता का अमृत महोत्सव मना रहे है, वहीं आदिवासी बहुल मेलघाट के गांवों में आज भी मूलभूत सेवा-सुविधाओं का अभाव है।
मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे बोदु गांव में तो सरकार नाम की व्यवस्था ही अस्तित्व में नहीं है। चिखलदरा मुख्यालय से लगभग 80 किमी अंतर पर स्थित यह परिसर विकास से कोसों दूर है। बिजली के अभाव में आदिवासी जनता के सभी व्यवहार ठप पड़े है। आज के आधुनिक युग में जनता के सभी आर्थिक व्यवहार आनलाइन पद्धति से हो रहे है।
लेकिन बिजली कंपनी की मनमानी से जंगल में रह रहे आदिवासियों का जीवन अंधेरे में है। मध्य प्रदेश के भैसदई से इस क्षेत्र में बिजली आपूर्ति की जाती है। रोजगार गारंटी योजना के सर्वाधिक मजदूर उपस्थित रहने वाले इस क्षेत्र में बिजली की आंखमिचौली से बैंक के आर्थिक व्यवहार ठप पड़े है। सरकार का ध्यान नहीं होने से आदिवासी परिवार संकट का सामना करने विवश है।
आनलाइन प्रक्रिया से आदिवासी नागरिकों को आधार कार्ड, श्रमकार्ड, आयुष्यमान, इस तरह विविध योजनाओं का लाभ पहुंचाने में दिक्कतें आ रही हैं। जिससे आदिवासी शासन की योजनाओं से वंचित हैं। पिछले कई वर्षों से मेलघाट के नागरिक बिजली समस्या से ग्रस्त हैं। अतिदुर्गम गांवों में बिजली का पता नहीं है।
बिजली कंपनी आदिवासी ग्राहकों के पीछे वसूली का तगादा लगाने में ही धन्यता मानती है। बिजली की आंखमिचौली से जनता त्रस्त है। फिर भी बिजली कंपनी के कर्मचारी ग्राहकों को परेशान करने का चित्र देखा जा सकता है। मोबाइल नेटवक् नहीं होने से पहले ही आदिवासी त्रस्त है। जंगल में नेटवर्क जहां मिलता है, वहां जाकर मोबाइल से बात करने विवश हो रहे है। बिजली नहीं होने से मोबाइल चतक चार्ज करने के वांदे है।