भटका-विमुक्त समाज को सत्ता में हिस्सेदारी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Jamkhed: देश को भले ही 1947 में आज़ादी मिल गई हो, लेकिन भटके-विमुक्त समाज को असली स्वतंत्रता 1952 के बाद ही मिली। आज भी हमारा समाज हाशिये पर है। हम केवल वोट बैंक बनकर रह गए हैं। अब समय आ गया है कि हम सत्ता में अपनी हिस्सेदारी लें और अपनी ताक़त को राजनीतिक शक्ति में बदलें। यह स्पष्ट घोषणा वंचित बहुजन आघाड़ी के नेता सुजात आंबेडकर ने जामखेड में आयोजित भटके-विमुक्त राज्यस्तरीय परिषद में की।
उन्होंने कहा कि भटके-विमुक्त समाज, आदिवासी समाज और दलित समाज दशकों से अन्याय सहते आ रहे हैं। समाज की समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब वह सीधे सत्ता की साझेदारी में आए। हम अपने अधिकार किसी से भीख माँगकर नहीं, बल्कि संघर्ष और संगठित ताक़त के बल पर हासिल करेंगे।
सुजात आंबेडकर ने वंचित के प्रमुख एड. प्रकाश आंबेडकर का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने विधानसभा चुनावों में 23 माइक्रो ओबीसी प्रत्याशी उतारकर यह साबित किया कि वंचित समाज राजनीति में अपनी अलग पहचान बना सकता है। आज सत्ता हमें किनारे करने की कोशिश कर रही है, लेकिन हमारी लड़ाई इतिहास रचने वाली है। सभा की अध्यक्षता वंचित बहुजन आघाड़ी के राज्य प्रवक्ता अधिवक्ता अरुण जाधव ने की। उन्होंने मंच से दो-टूक कहा – यदि समाज को अपना स्वाभिमान बचाना है, तो किसी भी राजनीतिक दल को भारत रत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के घराने से टकराने की भूल नहीं करनी चाहिए।
सभा को संबोधित करते हुए प्रा. किसन चव्हाण ने कहा, 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन भटके-विमुक्त समाज को वास्तविक मुक्ति 1952 में मिली। आज भी यह समाज शिक्षा, रोजगार और सत्ता से दूर है। हमें यह स्थिति बदलनी होगी और राजनीतिक भागीदारी से ही समाज का भविष्य सुरक्षित हो सकता है।
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सभा में आदिवासी नेता अनिल जाधव, संस्थान प्रमुख नंदू मोरे, लोकाधिकार आंदोलन के प्रवक्ता बापू ओहोळ और युवा नेता अंबर चव्हाण ने भी समाज के सवालों को उठाया। सभी ने एक स्वर से कहा कि अब वंचित और विमुक्त समाज किसी दल की कठपुतली नहीं रहेगा, बल्कि अपनी राजनीतिक दिशा खुद तय करेगा। इस राज्यस्तरीय परिषद ने स्पष्ट संकेत दिया कि भटके-विमुक्त समाज अब केवल सामाजिक प्रश्नों तक सीमित नहीं रहेगा। आने वाले जिला परिषद, पंचायत समिति और नगर परिषद चुनावों में वंचित बहुजन आघाड़ी सीधे सत्ता के लिए संघर्ष करेगी। सभा में मुस्लिम पंच कमेटी, मनसे, राष्ट्रीय समाज पक्ष, शेतकरी संगठन और प्रहार संगठन जैसे विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस आंदोलन को और व्यापक आयाम दिया।