सीमा कुमारी
सनातन हिंदू धर्म में ‘तुलसी विवाह’ (Tulsi Vivah) का विशेष महत्व है। ‘तुलसी विवाह’ कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी (Tulsi Vivah) के दिन मनाया जाता है। इस साल ‘देवउठनी एकादशी’ यानी ‘तुलसी विवाह’ का पावन पर्व 15 नवंबर, सोमवार को है।
मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने बाद ‘योग निद्रा’ से उठते हैं। कहते हैं कि, इस दिन चार महीने से सोए हुए देव जाग जाते हैं। हिंदू धर्म में ‘देवउठनी एकादशी’ (Devuthani Ekadashi) का दिन बहुत शुभ दिन होता है। इस दिन से सभी मांगलिक या शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। आइए जानें ‘तुलसी विवाह’ का शुभ-मुहूर्त, पूजा-विधि और महिमा –
एकादशी प्रारंभ 05.48 AM (14 नवंबर, रविवार 2021)
एकादशी समाप्त 06.39 AM (15 नवंबर, सोमवार 2021)
सांयकाल 07.50 PM से 09.20 PM तक
मान्यताओं के अनुसार, ‘देवउठनी एकादशी’ के दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह होता है। इसलिए हर सुहागन महिला को ‘तुलसी विवाह’ अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से अंखड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का प्राप्ति होती है। ‘तुलसी विवाह’ के दौरान इन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए:
पूजा के समय मां तुलसी को सुहाग का सामान और लाल चुनरी अवश्य चढ़ाएं।
गमले में शालीग्राम को साथ रखें और तिल चढ़ाएं। तुलसी और भगवान विष्णु को दूध में भीगी हल्दी का तिलक लगाएं।
पूजा के बाद किसी भी चीज के साथ 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
मिठाई और प्रसाद का भोग लगाएं। मुख्य आहार के साथ ग्रहण और वितरण करें।
पूजा खत्म होने पर शाम को भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें।
“तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।”
हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी का विवाह शालीग्राम अवतार में तुलसी जी (Bhagwan Shaligram Or Tulsi Vivah) के साथ होता है। इस दिन श्री हरि चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं। देवी तुलसी भगवान विष्णु को अतिप्रिय हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जागने के बाद भगवान विष्णु सर्वप्रथम हरिवल्लभा, यानि तुलसी की पुकार सुनते हैं।
‘तुलसी विवाह’ के साथ ही विवाह के शुभ मुहुर्त भी शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, चातुर्मास के दौरान सभी मांगलिक कार्यों की मनाही होती है और देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास खत्म होने के साथ सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।