विश्व वन्य जीव दिवस 2025 (सौ.सोशल मीडिया)
World Wildlife Day 2025 : दुनिया में पेड़-पौधे और जीव जंतु की संपदा होने से हर देश संपन्न रहता है। मौजूदा समय की बात की जाए तो ,पहले जहां पर जीव-जन्तु की चहचहाहट और पेड़-पौधों की हरियाली देखने के लिए मिलती थी वहीं पर अब यह सब गायब होने लगे है। इन जंगली वनस्पतियों और जीवों (Wild Flora and Fauna) की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण का महत्व बताने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व वन्य जीव दिवस मनाया जाता है।
यह दिन लुप्तप्राय प्राणियों के संरक्षण की बात करता है। चलिए जानते हैं इस दिवस की कब हुई शुरुआत और उन लुप्त हो चुके पौधे और जीव-जन्तु के बारे में…
आपको बताते चलें कि, विश्व वन्य जीव दिवस मनाने का महत्व है जो हर साल 3 मार्च को मनाया जाता है। यहां पर इस दिवस को मनाने की शुरुआत साल 2013 में हुई थी. 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने और वनस्पति के लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर 3 मार्च को हर साल विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिन पर थीम निर्धारित करने के साथ ही दिन को मनाया जाता है।
1-नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस- सबसे पहले लुप्तप्राय प्राणियों में नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस का नाम आता है इस अंतिम नर की 2018 के मार्च में मृत्यु हो गई थी। अब आखिरी दो जीवित उत्तरी वाइट राइनोसॉरस हैं और दोनों मादा हैं। जाहिर है कि दोनों जन्म देने में असमर्थ हैं. ऐसे में इस प्रजाति को विलुप्त माना जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह इनका शिकार है.
2-पैसेंजर पीजन- लुप्तप्राय प्राणियों में पैसेंजर पीजन (यात्री कबूतर) अब देखने के लिए नहीं मिलते है जिनकी संख्या लाखों में हुआ करती थी, लेकिन अब ये नजर नहीं आते. कहा जाता है कि लोगों ने इनका जमकर शिकार किया, जिसकी वजह से ये गायब हो गए।
3-डोडो- इसका नाम आपने सुना होगा, डोडो एक पक्षी था जो कभी मॉरीशस में पाया जाता था जिसे आखिरी बार डोडो को 1660 के दशक में देखा गया था। बताया जाता है कि, नाविकों ने डोडो का खूब शिकार किया और तमाम जानवरों ने इनके अंडे खाए, जिसके कारण ये प्रजाति विलुप्त हो गई।
4- डच बटरफ्लाई- लुप्तप्राय प्राणियों में इस पक्षी एल्कॉन ब्लू कलर की डच बटरफ्लाई का नाम आता है जो कि एक उप-प्रजाति मुख्य रूप से नीदरलैंड के घास के मैदानों में पाई जाती थी. आखिरी बार इसे 1979 में देखा गया था. खेती और घरों के ज्यादा निर्माण से एल्कॉन ब्लू के घरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे ये विलुप्त हो गई।
5. गोल्डन टॉड- लुप्तप्राय प्राणियों में इस पक्षी का नाम आता है इसमें गोल्डन टॉड आखिरी बार 1989 में देखा गया था। साल 1994 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया. माना जाता है कि एक घातक त्वचा रोग ने इसकी आबादी को नष्ट कर दिया था। बताया जाता है कि, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और चिट्रिड त्वचा संक्रमण आदि को इसके विलुप्त होने की वजह माना जाता है।
कहां गायब हो गए ये वन्य जीव (सौ.सोशल मीडिया)
1. होपिया शिंकेंग- ये पौधा पूर्वी हिमालय में कभी बड़ी संख्या में पाया जाता था, लेकिन बीते 100 से ये नजर नहीं आता.
2. आइलेक्स गार्डनेरियाना- ये सदाबहार प्रजाति का वृक्ष है. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार ये अब भारत में खत्म हो चुका है. इसके खत्म होने की मुख्य वजह तेजी से जंगलों की कटाई को माना गया है.
3. मधुका इंसिग्निस- ये पौधा कभी कर्नाटक में पाया जाता था, लेकिन अब ये वर्षों से नजर नहीं आया है. आईयूसीएन की 1998 में जारी सूची में इसे विलुप्त की श्रेणी में रखा गया है.
4. स्टरकुलिया खासियाना- मेघालय के खासी जनजातीय पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला ये पौधा भी भारत में बहुत तेजी से खत्म हुआ है. आईयूसीएन ने इसे भी लुप्त हो चुके पादपों की श्रेणी में रखा है. हालांकि इसकी सह प्रजातियों के जरिए इसे फिर से जंगल में लौटाने का प्रयास किया जा रहा है.