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– सीमा कुमारी
सनातन धर्म में ‘कोजागरी पूजा’ (Kojagari Puja) का विशेष महत्व है। अश्विन माह की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा पर खासतौर पर कोजागर पूजा की जाती है। ‘कोजागर पूजा’ में मां लक्ष्मी की आराधना का विधान है। यह पर्व पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और उड़ीसा में बहुत ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 9 अक्टूबर, रविवार को है। आइए जानें कोजागर पूजा की डेट, मुहूर्त और महत्व –
शास्त्रों के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। इस दिन पीतल, तांबे, चांदी, सोने जैसी धातु से बनी देवी लक्ष्मी की मूर्ति को नए वस्त्र में लपेटकर पूजा करें। इसके बाद रात्रि में चंद्रोदय के समय घी का दीपक जलाएं और चंद्र दर्शन करें। इस दूध से बनी खीर को चांद की रोशनी के नीचे रखने को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कुछ समय बाद वह खीर माता लक्ष्मी को अर्पित करें और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। माना जाता है कि इस दिन चांद की किरणों में अमृत के गुण आ जाते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में भी इस दिन खीर बनाने और उसे चांद की रोशनी में रखने को इतना महत्व दिया गया है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के समय प्रकट हुई थीं, इसलिए शरद पूर्णिमा का त्योहार मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन रात में जागरण कर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने धन-धान्य की कोई कमी नहीं आती। कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात अमृत बरसता है। इसलिए रात में चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है।
फिर इसका माता लक्ष्मी को भोग लगाया जाता है। मान्यता है ऐसा करने पर घर में सदा बरकत बने रहने का आशीर्वाद मिलता है। आर्थिक तंगी से परेशान लोगों को कोजागरी पूजा ज़रूर करनी चाहिए।