-सीमा कुमारी
‘रोहिणी व्रत’ (Rohini Vrat) जैन समुदाय का प्रमुख पर्व है। इस साल यह व्रत 10 फरवरी को है। यह व्रत हर महीने मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी वासुपूज्य स्वामी की पूजा-अर्चना करते हैं।
‘रोहिणी नक्षत्र’ के दिन मनाने के कारण इसे ‘रोहिणी व्रत’ कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि, इस व्रत को करने से महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं। महिलाएं रोहिणी व्रत अखंड सुहाग और पति के दीर्घायु के लिए करती हैं।
वहीं, पुरुष सुख, समृद्धि और शांति पाने के लिए करते हैं। जैन शास्त्रों में निहित है कि इस व्रत को कम से 5 महीने और अधिकतम 5 साल तक करना चाहिए। जैन धर्म में स्त्रियों के लिए यह व्रत अनिवार्य है। इस व्रत का पुण्य वट सावित्री व्रत के समतुल्य प्राप्त होता है। आइए, व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व जानें-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत संकल्प लें। इसके बाद आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान वासुपूज्य स्वामी की प्राण प्रतिष्ठा कर उनकी पूजा फल, फूल, दूर्वा आदि से करें। दिन भर उपवास रखें। सूर्योदय से पूर्व-पूजा और प्रार्थना कर फलाहार करें। जैन धर्म में रात्रि के समय भोजन करने की मनाही है। अतः इस व्रत को करने समय फलाहार सूर्यास्त से पूर्व कर लेना चाहिए। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।
जैन समुदाय में ऐसी मान्यता है कि ‘रोहिणी व्रत’ करने से व्रती को कर्म-बंधन से छुटकारा मिलता है। इस व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। रोहिणी व्रत से आत्मा का विकार दूर होता है। माना जाता है कि, ‘रोहिणी व्रत’ का पालन करने वाले लोग सभी प्रकार के दुखों और दरिद्रता से छुटकारा पा सकते है। रोहिणी नक्षत्र का पारण मार्गशीर्ष नक्षत्र के दौरान किया जाता है।