शिबू सोरेन, फोटो: सोशल मीडिया
Shibu Soren Political Journey: झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन जितना प्रेरणादायक रहा, उतना ही वह अस्थिरताओं से भी भरा रहा। तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे कुल मिलाकर केवल 10 महीने 10 दिन तक ही इस पद पर बने रह सके।
शिबू सोरेन के हर कार्यकाल को गठबंधन की मजबूरियों, राजनीतिक समीकरणों और नेतृत्व संकट ने समय से पहले समाप्त कर दिया। उनका पहला कार्यकाल महज दस दिनों तक चला। सिलसिलेवार ढंग से समझिए कैसा रहा है ‘दिशोम गुरु’ कहे जाने वाले सीएम का राजनीतिक सफर।
शिबू सोरेन ने पहली बार 2 मार्च 2005 को झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन उन्हें बहुमत साबित करने में असफलता मिली और महज 10 दिन बाद 12 मार्च 2005 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। यह झारखंड के इतिहास में सबसे छोटा मुख्यमंत्री कार्यकाल माना जाता है।
दूसरी बार शिबू सोरेन 27 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन वे तब तक विधायक नहीं थे जिससे संवैधानिक रूप से उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था। पार्टी के भीतर सीट छोड़ने को लेकर सहमति न बनने पर उन्हें तमाड़ विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ना पड़ा। यह क्षेत्र मुंडा बहुल था, जहां उनका मुकाबला झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर से हुआ। 8 जनवरी 2009 को आए नतीजों में उन्हें करीब 9 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
तीसरी बार शिबू सोरेन 30 दिसंबर 2009 को सीएम बने। इस बार उन्होंने कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा के समर्थन से सरकार बनाई। लेकिन यह गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और 31 मई 2010 को एक बार फिर उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
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हालांकि मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा, लेकिन शिबू सोरेन का योगदान झारखंड आंदोलन, आदिवासी हक और राज्य के निर्माण में ऐतिहासिक रहा है। वे झारखंड के जनमानस में एक आंदोलनकारी और जननेता के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके पुत्र हेमंत सोरेन भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जो उनके राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।