PTI Photo
इंफाल: मणिपुर में आदिवासियों के शीर्ष संगठन ‘इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम’ (Indigenous Tribal Leaders Forum) ने शनिवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को एक पत्र लिखकर हिंसा प्रभावित (Manipur Violence) राज्य में एक अलग प्रशासन और राष्ट्रपति शासन लागू (President’s Rule) करने की अपनी मांग के लिए समर्थन मांगा। मणिपुर में तीन मई से बहुसंख्यक मेइती और आदिवासियों के बीच जातीय झड़पें हो रही हैं, जिनमें 150 से अधिक लोग मारे गए हैं।
मणिपुर की आबादी में मेइती लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी नगा और कुकी की जनसंख्या करीब 40 प्रतिशत हैं और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं। आईटीएलएफ ने विपक्षी दलों को लिखे दो पृष्ठ के पत्र में कहा, ‘‘हम ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) से आग्रह करते हैं कि वह हमारा मुद्दा उठाए और देश को हमारी दुर्दशा से अवगत कराए। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि मणिपुर से अलग प्रशासन की हमारी मांग का समर्थन करके इस हमले से बचने में हमारी मदद करे और हिंसा को खत्म करने के लिए मणिपुर में तुरंत राष्ट्रपति शासन लागू करने का केंद्र सरकार से आग्रह करें।”
आईटीएलएफ के अध्यक्ष पागिन हाओकिप और सचिव मुआन टोम्बिंग द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि सांप्रदायिक संघर्ष के लगभग तीन महीने बाद भी पूर्वोत्तर राज्य में शांति एक दूर का सपना बनी हुई है।इसमें दावा किया गया, ‘‘हालांकि सभी पक्षों को नुकसान हुआ है, अल्पसंख्यक कुकी-ज़ो आदिवासियों को हिंसा का खामियाजा भुगतना पड़ा है और संघर्ष में इसके दो-तिहाई से अधिक लोग मारे गए हैं।”
आईटीएलएफ ने आरोप लगाया कि राजधानी इंफाल में सरकारी शस्त्रागारों से लूटे गए हजारों हथियारों का इस्तेमाल ‘‘जातीय सफाया अभियान” में किया जा रहा है। इसमें कहा गया है, ‘‘हमारी दुर्दशा को और बढ़ाने के लिए, अत्याधुनिक बंदूकों और मोर्टार के साथ राज्य पुलिस के कमांडो आदिवासी गांवों पर छापा मारने और अग्रिम मोर्चों पर हमला करने के लिए में सशस्त्र मेइती बंदूकधारियों के साथ खुले तौर पर शामिल हो रहे हैं…सैन्य बफर जोन में अंतर का लगातार गलत इस्तेमाल किया जा रहा है तथा सेना और अन्य सुरक्षा बल पंगु हैं क्योंकि राष्ट्रपति शासन अभी भी लागू नहीं हुआ है।”
इसमें कहा गया है कि राज्य के सबसे बड़े जिले चुराचांदपुर की पहाड़ियों तक जाने वाले एकमात्र राष्ट्रीय राजमार्ग की नाकेबंदी के चलते लाखों आदिवासियों को आवश्यक वस्तुओं और दवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। आईटीएलएफ ने कहा, ‘‘जो उपलब्ध हैं वे पहाड़ी सड़कों के माध्यम से मिजोरम से लाए गए हैं, जिससे वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है।”
आईटीएलएफ ने कहा कि तीन मई को हिंसा शुरू होने के बाद से, उसने 119 मौतें दर्ज की हैं, जिनमें ज्यादातर निर्दोष नागरिक हैं, 7,000 से अधिक घर जला दिए गए, 359 चर्च नष्ट हो गए और 40,000 से अधिक आदिवासी विस्थापित हो गए।
पत्र में लिखा गया है, ‘‘आदिवासी और मेइती अब भौतिक रूप से अलग हो गए हैं। इतने रक्तपात और आघात के बाद, उनके दोबारा एक साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। हम मेइती समुदाय द्वारा नियंत्रित सांप्रदायिक मणिपुर सरकार के तहत वापस रहने के विचार को स्वीकार करने से इनकार करते हैं।” इसमें कहा गया है, ‘‘अगला तार्किक कदम हमें राजनीतिक रूप से अलग करना है। कुकी-ज़ो आदिवासियों को हमारी अपनी भूमि में जीने देने के लिए हम केंद्र सरकार से कह रहे हैं कि वह हमें भारतीय संविधान के तहत खुद पर शासन करने का अधिकार दे।”