प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो-सोशल मीडिया
मानवाधिकार संगठनों और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ये कहा जाता रहा है कि इन कब्रों में कथित रूप से आम नागरिकों को दफ्न किया गया है, जिन्हें सैन्य कार्रवाई में मार दिया गया। लेकिन अब एक नई विस्तृत और दस्तावेज आधारित रिपोर्ट इन दावों को सिरे से खारिज करती और चुनौती देती नजर आ रही है।
‘अनरेवलिंग द ट्रुथ: ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अनमार्क एंड अनआइडेंटिफाइड ग्रेव्स इन कश्मीर’ नाम की एक रिपोर्ट कश्मीर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन ‘सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन’ की ओर से 2018 से किए जा रहे एक रीसर्च पर आधारित है। इस रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर के सीमावर्ती जिलों बारामूला, कुपवाड़ा, बांदीपोरा और मध्य कश्मीर के गांदरबल में मौजूद 4,056 अज्ञात कब्रों का गहन निरीक्षण और दस्तावेजीकरण किया गया।
इस अध्ययन को लीड कर रहे वजाहत फारुख भट की मानें तो रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग 90 प्रतिशत कब्रें उन आतंकवादियों की हैं जो सेना की ओर से आतंकवाद-रोधी अभियानों में मार दिए गए थे। इनमें से 2,493 कब्रें (61.5 प्रतिशत) विदेशी आतंकवादियों की थीं, जो पहचान पत्र न होने के कारण अज्ञात रह गए। वहीं, 1,208 कब्रें (29.8 प्रतिशत) कश्मीर के स्थानीय आतंकवादियों की थीं, जिनकी पहचान उनके परिवारों और सामुदायिक साक्ष्यों से की गई।
शोधकर्ताओं ने बताया कि केवल 9 कब्रें (0.2 प्रतिशत) ऐसी पाई गईं, जिनमें आम नागरिकों के दफ्न होने की पुष्टि हुई। यह आंकड़ा उन सभी दावों को सीधे खारिज करता है, जिनमें कहा गया था कि हजारों आम नागरिकों को मारा गया और गुप्त रूप से दफ्न किया गया।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि शोध के दौरान कई स्थानीय सूत्रों से जानकारी जुटाई गई जिनमें मस्जिद समितियों के सदस्य, कब्र खोदने वाले, लापता लोगों के परिजन, पूर्व आतंकवादी और स्थानीय लोग शामिल थे। इन साक्ष्यों के आधार पर कब्रों की पहचान और सत्यापन किया गया।
इसके अलावा, रिपोर्ट में 70 ऐसी कब्रों की पहचान भी की गई, जिनमें 1947 में जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान की ओर से हमला करने वाले कबायली लड़ाके दफ्न थे। यह ऐतिहासिक जानकारी इस बात की पुष्टि करती है कि क्षेत्र में पुरानी कब्रों की भी उपस्थिति है, जिसे कई बार गलत संदर्भ में पेश किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, फॉरेंसिक और डीएनए जांच की मदद से कुछ कब्रों की अधिक वैज्ञानिक पुष्टि की आवश्यकता है। रिपोर्ट तैयार करने वालों का कहना है कि इसके जरिए उन आरोपों का खंडन किया जा सकता है, जिनमें भारत की सेना पर व्यवस्थित न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगाए जाते रहे हैं।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में इफराज बन गया ‘राज आहूजा’, ऑपरेशन कालनेमी के तहत धर्मांतरण गिरोह पर पुलिस ने कसा शिकंजा
वजाहत भट ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वह किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जमीनी सच्चाई को समझे। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य प्रोपेगेंडा के विरुद्ध सच्चाई को सामने लाना है, खासकर उन आरोपों के खिलाफ जो बिना ठोस प्रमाणों के लगाए जाते रहे हैं।
यह रिपोर्ट न केवल वर्षों से चले आ रहे प्रचार का जवाब है, बल्कि यह कश्मीर में सेना की कार्रवाई को लेकर फैलाई जा रही गलत धारणाओं को भी चुनौती देती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अज्ञात कब्रों का बड़ा हिस्सा आतंकवादियों से जुड़ा है, न कि आम नागरिकों से, जैसा कि लंबे समय से कहा जाता रहा है।