पी. कृष्ण पिल्लई (पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता और कम्युनिस्ट क्रांतिकारी)
P Krishna Pillai: केरल की धरती ने भी आजादी के आंदोलन और सामाजिक बदलाव की तमाम गाथाओं को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक थे पी. कृष्ण पिल्लई, जिनका जीवन गांधीवादी मूल्यों से शुरू होकर कम्युनिस्ट क्रांति तक पहुंचा। 19 अगस्त 1906 को जन्मे और संयोग से 19 अगस्त 1948 को ही दुनिया को अलविदा कहने वाले इस नेता ने न केवल केरल में मजदूर आंदोलनों को मजबूत किया, बल्कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की नींव रखने में भी एक अहम भूमिका निभाई। पिल्लई केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक नेताओं में से एक और साथ ही वे एक कवि भी थे।
पी. कृष्ण पिल्लई का बचपन संघर्षों से भरा रहा। छोटी सी उम्र में ही अपने माता-पिता को खोने के बाद उन्हें स्कूल भी बीच में छोड़ना पड़ा। 1920 में घर छोड़कर वे उत्तर भारत की यात्रा पर निकले और लौटने के बाद सामाजिक असमानता से संघर्ष करते केरल को देखा तो इसी समय वे आंदोलनों से जुड़ने लगे। वायकोम सत्याग्रह (1924) और 1930 का नमक मार्च उनकी शुरुआती सक्रियता की झलक थी। इन सभी अनुभवों ने उन्हें राजनीति और क्रांति के रास्ते पर आगे बढ़ाया।
कृष्ण पिल्लई ने राजनीति की शुरुआत गांधीवादी विचारधारा और कांग्रेस के साथ की। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने समाजवाद और साम्यवाद को अपनाया। 1934 में जब कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनी तो उन्हें केरल का सचिव नियुक्त किया गया। 1936 तक उन्होंने कोचीन और त्रावणकोर में सक्रिय प्रचार शुरू कर दिया।
1938 में अलप्पुझा में मजदूर हड़ताल का सफल आयोजन उनकी बड़ी उपलब्धि रही। इस आंदोलन ने मजदूरों और किसानों में हक की लड़ाई के लिए ऊर्जा भरी और आगे चलकर पुन्नपरा-वायलार संघर्ष (1946) की नींव रखी। यही संघर्ष त्रावणकोर में सीपी रामास्वामी अय्यर के शासन के अंत का कारण बना।
उनकी मेहनत से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की मालाबार इकाई को 1940 में औपचारिक रूप से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की केरल इकाई में बदला गया। इस तरह केरल में साम्यवादी आंदोलन का बीज पड़ा।
कृष्ण पिल्लई न केवल खुद नेता थे बल्कि वे नई पीढ़ी को भी प्रेरित करते रहे। वी.एस. अच्युतानंदन, जिन्हें आगे चलकर केरल का मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला, उन्हीं की दृष्टि का परिणाम थे।
पिल्लई ने अच्युतानंदन को पहली बार छात्र जीवन में पहचाना। देर रात की अध्ययन कक्षाओं में जब अच्युतानंदन सवाल पूछते तो पिल्लई कहते, “वह एक चिंगारी हैं, जो किसी भी चीज में आग लगा सकते हैं।” उन्होंने ही उन्हें कुट्टनाड भेजा, जहां गरीब खेतिहर मजदूरों का शोषण हो रहा था। वहां से अच्युतानंदन ने अपने संघर्ष की शुरुआत की और मजदूरों-किसानों को संगठित किया।
यह वही दौर था जब अच्युतानंदन ने मजदूरी न मिलने पर विरोध किया और जमींदारों के अन्याय के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। यह सब पिल्लई की दूरदर्शिता और मार्गदर्शन का ही नतीजा था।
1948 में जब सीपीआई ने कलकत्ता थीसिस के तहत सशस्त्र संघर्ष की राह अपनाई, तो पार्टी पर देशव्यापी प्रतिबंध लगा। इस दौरान पिल्लई को भी छिपना पड़ा। अल्लेप्पी जिले के मुहम्मा गांव में मजदूर की झोपड़ी में रहते हुए उन्हें सांप ने काट लिया और मात्र 42 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि उनका जीवन छोटा रहा, लेकिन विरासत बहुत बड़ी। उन्होंने गांधीवाद से कम्युनिज्म तक की यात्रा तय करते हुए मजदूरों और किसानों को आवाज दी।
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साथ ही एक नई पीढ़ी को तैयार किया जिसने आगे चलकर केरल की राजनीति और समाज को नई दिशा दी। वी.एस. अच्युतानंदन जैसे नेताओं का उभार इसी की गवाही है। पी. कृष्ण पिल्लई आज भी उस पीढ़ी के प्रतीक हैं, जिन्होंने अपने जीवन की हर सांस सामाजिक न्याय और समानता के लिए समर्पित कर दी। उनका नाम केरल की क्रांतिकारी चेतना के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा।