दिल्ली-एनसीआर को स्मॉग से मिलेगा छुटकारा (कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : पिछले दस दिनों से दिल्ली और एनसीआर में छाई धुंध की घनी चादर कम होने का नाम नहीं ले रही है। दिवाली के बाद शुरू हुआ यह चलन पूरे क्षेत्र को हर दिन 400-500 या इससे भी बदतर जल गुणवत्ता सूचकांक के साथ जीने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में जब कोई बाहर जाता है तो जहरीली हवा गले और फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है। ग्रैप 4 लगा देने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं अब ऐसा लगता है कि दिल्ली एनसीआर में कृत्रिम बारिश ही इस स्थिति का समाधान कर सकती है। नोएडा की कुछ कॉलोनियां भी अपने इलाकों में ऐसा करने पर विचार कर रही हैं।
यहां सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि मौसम पूर्वानुमान में अगले 8-10 दिनों तक बारिश की कोई संभावना नहीं जताई गई है। क्योंकि जब यह बारिश होती है तो हवा में घुले प्रदूषक तत्व लंबे समय तक रहने वाले स्मॉग के कारण धुल जाते हैं। यहां रहने से लोगों के स्वास्थ्य में व्यापक गिरावट आई है। आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, खांसी की शिकायत। सबसे ज्यादा मुश्किल में वो लोग, जो सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं।
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ऐसे में अब कृत्रिम बारिश ही एकमात्र उपाय नजर आ रहा है जो दिल्ली- एनसीआर और उत्तर भारत को कुछ राहत दिला सकता है। भारत के पास कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक है। हमारे देश में अनेक स्थानों पर समय-समय पर ऐसी वर्षा होती रही है। ऐसी बारिश के बाद हवा पूरी तरह साफ हो जाएगी। जिसका लोगों के स्वास्थ्य पर काफी सकारात्मक असर पड़ेगा। पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात में चिलचिलाती गर्मी के कारण ड्रोन का उपयोग करके बादलों को बिजली से चार्ज करके कृत्रिम बारिश कराई गई थी। हालांकि बारिश कराने की ये एक नई तकनीक है। विद्युत प्रवाहित बादलों से वर्षा होती है। बिजली चार्ज होते ही बादलों में घर्षण होने लगा और दुबई तथा आसपास के शहरों में भारी बारिश होने लगी।
स्मॉग के चलते सांस लेना भी मुश्किल ( कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
कृत्रिम बारिश कराना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस उद्देश्य से सबसे पहले कृत्रिम बादल बनाये जाते हैं। सबसे पुरानी और सबसे प्रचलित तकनीक में विमान या रॉकेट के जरिए ऊपर पहुंचकर बादलों में सिल्वर आयोडाइड मिला दिया जाता है। सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ है। इसलिए बादल का पानी भारी हो जाता है और बरस जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बारिश के लिए बादलों की आवश्यकता होती है। बादलों के बिना बादलों का निषेचन संभव नहीं है। जब बादल बनते हैं तो सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है। इसके कारण भाप पानी की बूंदों में बदल जाती है। ग्रैविटी के कारण वे भारी हो जाते हैं और जमीन पर गिर जाते हैं। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के 56 देश क्लाउड सीडिंग का प्रयोग कर रहे हैं।